रिवायात की छानबीन
क़ारिये मोहतरम, अब हम यहाँ पर आयते बल्लिग़ की तफ़सीर में हज़रत अली (अ) की शान में फ़रीक़ैन के तरीक़ों से बयान होने वाली रिवायात की तरफ़ इशारा करते हैं:
1. अबू नईम इस्फ़हानी की रिवायत
अबू नईम ने अबू बक्र ख़लाद से उन्होने मुहम्मद बिन उस्मान बिन इब्ने अबी शैबा से, उन्होने इब्राहीम बिन मुहम्मद बिन मैमून से, उन्होने अली बिन आबिस से, उन्होने अबू हज्जाफ़ व आमश से, उन्होने अतिया से, उन्होने अबी सईदे ख़िदरी से नक्ल किया है कि रसूले अकरम (स) पर यह आयते शरीफ़ा हज़रत अली (अ) की शान में नाज़िल हुई है।
अल ख़सायस, इब्ने तरीक़ ब नक़्ल अज़ किताब मा नज़ला मिनल कुरआन फ़ी अलीयिन, अबू नईम इसफ़हानी
सनद की छान बीन
अबू बक्र बिन ख़लाद, यह वही अहमद बिन युसुफ़े बग़दादी है कि जिनको ख़तीबे बग़दादी ने उनसे सुनने को सही माना है और अबू नईम बिन अबी फ़रास ने उनका तआरूफ़ सिक़ह के नाम से कराया है और ज़हबी ने उनको शैख सदुक़ (यानी बहुत ज़्यादा सच बोलने वाले उस्ताद) का नाम दिया है। मुहम्मद बिन उस्मान बिन अबी शैबा, उनको ज़हबी ने इल्म का ज़र्फ़ क़रार दिया है और सालेह जज़रा ने उनको सिक़ह शुमार किया है नीज़ इब्ने अदी है: मैंने उनसे हदीसे मुन्कर नही सुनी जिसको ज़िक्र करू। इब्राहीम बिन मुहम्मद बिन मैमून, इब्ने हय्यान ने उनका शुमार सिक़ह रावियों में किया है और किसी ने उनको कुतुबे ज़ईफ़ा में ज़िक्र नही किया है, अगर उनके लिये कोई ऐब शुमार किया जाता है तो उसकी वजह यह है कि उन्होने अहले बैत (अ) मख़सूसन हज़रत अली (अ) के फ़ज़ायल को बयान किया है। अली बिन आबिस, यह सही तिरमिज़ी के सही रिजाल में से हैं। अगर उनके मुतअल्लिक़ कोई ऐब तराशा जाता है तो उनके शागिर्दों का तरह अहले बैत (अ) के फ़ज़ायल नक़्ल करने की वजह से लेकिन इब्ने अदी के क़ौल के मुताबिक़ उनकी अहादिस को लिखना सही है।
तारिख़े बग़दाद जिल्द 5 पेज 220 से 221
सेयरे आलामुन नबला जिल्द 16 पेज 69
तारिख़े बग़दाद जिल्द 3 पे 43
अस सेक़ात जिल्द 8 पेज 74
तक़रीबुत तहज़ीब जिल्द 2 पेज 39
अल कामिल फ़िज ज़ुआफ़ा जिल्द 5 पेज 190 हदीस 1347
· अबुल हज्जाफ़, उनका नाम दाउद बिन अबी औफ़ है। मौसूफ़ अबी दाउद, निसाई और इब्ने माजा के रेजाल में शुमार होते हैं कि अहमद बिन हंमल और यहया बिन मुईन ने उनको सिक़ह माना है और अबू हातिम ने भी उनको सालेहुल हदीस क़रार दिया है। अगरचे इब्ने अदी ने उनको अहले बैत (अ) के फज़ायल व मनाक़िब में अहादिस बयान करने की वजह से ज़ईफ़ शुमार किया है।
· आमश, मौसूफ़ का शुमार सेहाहे सित्ता के रेजाल में होता है।
नतीजा यह हुआ कि इस हदीस के सारे रावी ख़ुद अहले सुन्नत के मुताबिक़ मोतबर हैं।
मीज़ानुल ऐतेदाल जिल्द 2 पेज 18
अल कामिल फ़िज़ ज़ुआफ़ा जिल्द 3 पेज 82, 83 हदीस 625
तक़रीबुत तहज़ीब जिल्द 1 पेज 331 2. इब्ने असाकर की रिवायत
इब्ने असाकर ने अबू बक्र वजीह बिन ताहिर से, उन्होने अबी हामिदे अज़हरी से, उन्होने अबू मुहम्मद मुख़ल्लदी हलवानी से, उन्होने हसन बिन हम्माद सज्जादा से, उन्होने अली बिन आबिस से, उन्होने आमश और अबिल हज्जाफ़ से, उन्होने अतिया से उन्होने सईद बिन ख़िदरी से नक़्ल किया है कि रसूले अकरम (स) पर आयते शरीफ़ा (आयत) रोज़े ग़दीरे ख़ुम में हज़रत अली (अ) की शान में नाज़िल हुई है।
सनद की छानबीन
· वजीह बिन ताहिर, इब्ने जौज़ी ने उनको शेख़ सालेद सदूक़ और ज़हबी ने शैख़ आलिम व आदिल के नाम से सराहा है।
· अबू हामिद अज़हरी, मौसूफ़ वही अहमद बिन हसने नैशापुरी हैं जिनको ज़हबी ने आदिल और सदूक़ के नाम से याद किया है।
· अबू मुहम्मद मुख़ल्लदी, हाकिम ने उनसे हदीस को सुनना सही क़रार दिया है और रिवायत में मुसतहकम शुमार किया है। और ज़हबी ने भी उनको शेख सदूक़ और आदिल क़रार दिया है।
तर्जुमा ए इमाम अली बिन अबी तालिब (अ) अज़ तारिख़े दमिश्क़ जिल्द 2 पेज 86
अल मुनतज़िम जिल्द 18 पेज 54
सेयरे आलामुन नबला जिल्द 20 पेज 109
सेयरे आलामुन नबली जिल्द 18 पेज 254
सेयरे आलामुन नबला जिल्द 16 पेज 540
अबू बक्र मुहम्मद बिन इब्राहिम हलवानी, ख़तीबे बग़दादी ने उनको सिक़ह शुमार किया है। हाकिमे नैशापुरी ने उनको सिक़ह रावियों में माना है। और ज़हबी ने उनको हाफ़िज़े सब्त के उनवान से याद किया है। नीज़ इब्ने जौज़ी ने उनको सिक़ह क़रार दिया है।
· हसन बिन हम्माद सजादा, मौसूफ़ अबी दाउद, निसाई और इब्ने माजा के रेजाल में से हैं जिनके बारे में अहमद बिन हंबल ने कहा है कि उनसे मुझ तक ख़ैर के अलावा कुछ नही पहुचा। ज़हबी ने उनको जैयद उलामा और अपने ज़माने के सिक़ह रावियों में से माना है। नीज़ इब्ने हजर ने उनको सदूक़ के नाम से याद किया है।
और बाक़ी सनद के रेजाल की छानबीन गुज़िश्ता हदीस में हो चुकी है।
सेयरे आलामुन नबला जिल्द 16 पेज 539
तारिख़े बग़दाद जिल्द 1 पेज 398
सेयरे आलामुन नबला जिल्द 15 पेज 61
सेयरे आलामुन नबला जिल्द 15 पेज 60
अल मुनतज़िम जिल्द 12 पेज 279
सेयरे आलामुन नबला जिल्द 11 पेज 393
सेयरे आलामुन नबला जिल्द 11 पेज 393
तक़रीबुत तहज़ीब जिल्द 1 पेज 165 3. वाहिदी की रिवायत
वाहिदी ने अबू सईद मुहम्मद बिन अली सफ़्फार से, उन्होने हसन बिन अहमद मुख़ल्लदी से, उन्होने मुहम्मद बिन हमदून से, उन्होने मुहम्मद बिन इब्राहीम ख़ल्वती (हलवानी) से, उन्होने हसन बिन हम्माद सजादा से, उन्होने अली बिन आबिस से, उन्होने आमश और अबी हज्जाफ़ से, उन्होने अतिया से, उन्होने अबू सईदे ख़िदरी से नक्ल किया है कियह आयते शरीफ़ा (आयत) रोज़े ग़दीरे ख़ुम में हज़रत अली (अ) की शान में नाज़िल हुई।
सनद की छानबीन
महमूद जअबी ने अपनी किताब अल बय्येनात फ़िर रद्दे अलल मुराजेआत में इस हदीस की सनद पर यह ऐतेराज़ किया है कि इसकी सनद में अतिया शामिल है।
चुनाचे उनका कहना है कि अतिया को इमाम अहमद बिन हंबल ने ज़ईफ़ुल हदीस माना है और अबू हातिम ने भी उसकी तज़ईफ़ की है और इब्ने अदी ने उसको शियाने कूफ़ा में शुमार किया है।
लेकिन यह तज़ईफ़ यक़ीनी तौर पर सही नही है क्योकि:
अव्वल. अतिया औफ़ी ताबेईने में से हैं जिनके बारे में रसूले अकरम (स) ने मदह की है।
दूसरे. अल अदबुल मुफ़रद में बुख़ारी और सही अबी दाऊद, सही तिरमिज़ी, सही इब्ने माजा और मुसनदे अहमद के रेजाल में उनका शुमार होता है और उलामा ए अहले सुन्नत ने बहुत ज़्यादा मदह की है।
लेकिन जौज़जानी जैसे लोगों ने उनको ज़ईफ़ माना है जो ख़ुद नासेबी होने और हज़रत अली (अ) से मुनहरिफ़ होने में मशहूर है और उसकी तज़ईफ़ करना भी इसी वजह से कि मौसूफ़ हज़रत अली (अ) को सभी सहाबा पर तरजीह देते थे और जब हुज्जाज की तरफ़ से हज़रत अली (अ) पर तअन व तअन करने का हुक्म दिया गया तो उन्होने क़बूल नही किया, जिसके नतीजे में उनको चार सौ कोड़े लगाये गये और उनकी दाढ़ी को भी .. दिया गया।
4. हिबरी की रिवायत
हिबरी ने हसन बिन हुसैन से, उन्होने हबान से, उन्होने कलबी से, उन्होने अबी सालेह से, उन्होने इब्ने अब्बास से आयते शरीफ़ा (आयत) की तफ़सीर में नक़्ल किया है कि यह आयते शरीफ़ा हज़रत अली (अ) की शान में नाज़िल हुई है। चुनाचे रसूले ख़ुदा (स) को हुक्म हुआ कि जो कुछ (हज़रत अली (अ) के बारे में) नाज़िल हो चुका है उसको पहुचा दो। उस मौक़े पर आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ) का हाथ बुलंद करके फ़रमाया:
हदीस
जिसका मैं मौला हूँ पस उसके यह अली मौला हैं, पालने वाले, जिसने उनकी विलायत को क़बूल किया और उनको दोस्त रखा तू भी उसको अपनी विलायत के ज़ेरे साया क़रार दे और जो शख़्स उनसे दुश्मनी रखे और उनकी विलायत का इंकार करे तू भी उसको दुश्मन रख।
अहले सुन्नत के नज़दीक इस रिवायत की सनद मोतबर है।
तफ़सीरे हिबरी पेज 262
अहले बैत (अ) की निगाह में आयत का शाने नुज़ूल
शेख़ कुलैनी ने सही सनद के साथ ज़ुरारा से, उन्होने फ़ुज़ैल बिन यसार से, उन्होने बुकैर बिन आयुन से, उन्होने मुहम्मद बिन मुस्लिम से, उन्होने बरीद बिन मुआविया और अबिल जारू से और उन्होने हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से रिवायत की है कि ख़ुदा वंदे आलम ने अपने रसूल को हज़रत अली की विलायत का हुक्म दिया और यह आयए शरीफ़ा नाज़िल फ़रमाई
(आयत)
(सूरये मायदा आयत 55)
ईमान वालो, बस तुम्हारा वली अल्लाह है और उसका रसूल और वह साहिबाने ईमान जो नमाज़ कायम करते हैं और हालते रुकू में ज़कात देते हैं।
ख़ुदा वंदे आलम ने उलिल अम्र की विलायत को वाजिब क़रार दिया है, वह नही जानते थे कि विलायत क्या है? पस ख़ुदा वंदे आलम ने हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) को हुक्म दिया कि उनके लिये विलायत की तफ़सीर फ़रमा दें, जैसा कि नमाज़, रोज़ा, हज और जकात की तफ़सीर की है, जब यह हुक्म नाज़िल हुआ तो आँ हज़रत (स) परेशान हुए कि कहीं लोग अपने दीन से फिर न जायें और मुझे झुटलाने लगें, आँ हज़रत (स) ने अपने परवरदिगार की तरफ़ रुजू किया उस मौक़े पर ख़ुदा वंदे आलम ने यह आयत नाज़िल फरमाई:
(आयत)
ऐ पैग़म्बर, आप उस हुक्म को पहुचा दें जो आपके परवरदिगार की तरफ़ नाज़िल किया गया है और अगर यह न किया तो गोया उसके पैग़ाम को नही पहुचाया और ख़ुदा आपको लोगों के शर से महफ़ूज़ रखेगा।
पस आँ हज़रत (स) ने ख़ुदा के हुक्म से विलायत को वाज़ेह कर दिया और रोज़े गदीरे ख़ुम में हज़रत अली (अ) की ख़िलाफ़त का ऐलान किया... और मुसलमानों को हुक्म दिया कि हाज़ेरीन ग़ायेबीन तक इस वाक़ेया की इत्तेला दें।
काफ़ी जिल्द 1 पेज 290 हदीस 5
source : alhassanain