अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: मक्के से कूफ़े, फिर कर्बला तक और फिर जो कुछ कर्बला में घटित हुआ, बहादुरी, साहस, चलैंजेज़ और ख़ूनी टकराव और उसके बाद (आशूरा की) दुखद हालात मानो कर्बला के हर हर चरण में ''सब्र'' हावी दिखाई देता है। क्या कर्बला से कूफ़े तक और फिर वहाँ से दमिश्क और सीरिया तक फिर वहां से वापस मदीने तक हर चरण में सब्र, दृढ़ता, सहनशीलता की मिसालें नहीं दिखती हैं?
जाहिर है कि हमारे यहां जब ज़ाकिर और ख़तीब बहुत सी बातों को मसाएब की शक्ल में बयान करते हैं और वह मुसीबत ही है लेकिन कभी कभी मजलिस और मिम्बर की ज़रूरत की वजह से बढ़ा चढ़ा के भी बयान किया जाता है। एक ऐसे अंदाज़ से इंसानी पहलू को बयान करें ताकि अज़ादार गिरया कर सकें जाहिर है कि इसमें पूरी बारीकी का ध्यान नहीं रखा जाता। जी ''कर्बला वाले'' रोते भी थे, मदद को पुकारते भी थे लेकिन जो चीज स्पष्ट थी वह सब्र, धैर्य, दृढ़ता, अल्लाह की मर्ज़ी के आगे तस्लीम और चलैंज के आगे डट जाना था। कुछ लोग (यह गलत मसाएब) पढ़ते हैं कि नऊज़ोबिल्लाह इमाम अ. की शहादत के बाद हज़रत ज़ैनब खुले सिर ख़ैमे से बाहर निकल आईं, हेजाब को उतार दिया और ... नऊज़ो बिल्लाह यह क्या झूठ कहा जा रहा है। क्या इसे हुसैनी मजलिस कहा जा सकता है? क्या हज़रत ज़ैनब का कैरेक्टर ऐसा हो सकता है क्या हम दुनिया के सामने हज़रत ज़ैनब अ. का इस तरह मनगढ़त परिचय कराना चाहते हैं?
वह जनाबे ज़ैनब स. जिसका कोई बदल नहीं उसे इस तरह पेश किया जाए क्या हज़रत ज़ैनब का कैरेक्टर ऐसा हो सकता है यह आपकी गढ़ा हुआ फ़र्ज़ी कैरेक्टर है न वह महान हस्ती जिसे हम मानते हैं यह ज़ैनब बिन्ते अली इब्ने अबी तालिब अ. नहीं हो सकतीं, यह ज़ैनब बिंते फ़ातिमा नहीं हो सकतीं, यह ज़ैनब बिंते रसूलुल्लाह स. नहीं हो सकतीं।
मेरे भाईयों टाइम ख़त्म हो चुका है लेकिन मैं कुछ कहना चाहता हूं मेरी हमेशा कोशिश रही है कि इस तरह की बातों से दूर रहूं और मैं अब भी इस तरह की बातों की गहराई में नहीं जाना चाहता हूं लेकिन चूंकि कुछ जगहों पर अहलेबैत अ., इमाम हुसैन अ., रसूले इस्लाम स. और हज़रत ज़ैनब अ. और इमाम हुसैन अ. की बेटियों की शान में गुस्ताख़ी की जा रही है ऐसी गुस्ताख़ी कि यक़ीन जानिए इसे सहन ही नहीं किया जा सकता है पहले हालात ऐसे नहीं थे जो कुछ इस समय दिखाया जा रहा है पहले ऐसा नहीं था यह सरासर झूठ है। उम्मीद है कि इस साल आशूरा के दिन यह लोग इन (ग़लत) कामों को अंजाम नहीं देंगे जैसे कुछ एरियों में बहुत अफ़सोस के साथ, आशूरा के दिन वह क्या कर रहे होते हैं?? इमामबाड़ों की बात नहीं कर रहा हूं यह मसला ख़ुद कर्बला में भी सामने आया है माफ़ कीजिएगा मैं मिसाल के तौर पर यह बताना चाह रहा हूं कि हालत क्या हो चुकी है वह एक स्ट्रेचर लाते हैं और उस पर एक (इंसान) की डमी रखते हैं तो यह कौन है??? कहते हैं यह इमाम हुसैन अ. हैं, इस स्ट्रेचर के ऊपर शेर के कपड़े पहने एक आदमी चढ़ जाता है तो यह क्या है? कहा जाता है कि यह शेर है असद है।
ज़ाहिर है कि यह शेर की एक पूरी डमी बना बैठा है जहां दुम से लेकर उसके दांत तक साफ दिख रहे हैं अब यह शेर (डमी) बना इंसान कौन है जो लाश के ऊपर बैठा अपना सर पीट रहा है?? यह कौन है??
तो कहते हैं अली इब्ने अबी तालिब अ. हैं।
मेरे भाई मैं अली का शिया हूं और कहता हूं कि अली अ. इन चीज़ों से पाक और बरी हैं।
अली अ. इस अपमान और इन गुस्ताख़ियों से पाक और बरी हैं। इस मुद्दे से जुड़े हुए एक आदमी को मैंने बता दिया कि क्या तुम पसंद करोगे कि इस तरह की गुस्ताख़ी तुम्हारे बाप के साथ की जाए?
तुम ऐसी गुस्ताख़ी को अपने बाप के लिए बर्दाश्त करोगे? कैसे फिर अली अ. के लिए बर्दाश्त की जा सकती है?
यह मौला अली अ., हज़रत ज़ैनब अ. और अहलेबैत अ. की शान में किस तरह की गुस्ताख़ी और अपमान किया जा रहा है?
वह क्या करना चाहते हैं?
क्या अहलेबैत अ. हमें कुत्ता देखना चाहते हैं?
इमाम हुसैन अ. का बलिदान औऱ आशूरा की पूरी घटना किस चीज़ के लिए हुई?
शराफ़त, इज़्ज़त और अल्लाह व उसके रसूल स. अपमान व ज़िल्लत को हमसे दूर देखना चाहते हैं (इमाम हुसैन अ. के वाक्य) अहलेबैत अ. हमें इज़्जतदार और सर उठा कर चलने वाला देखना चाहते हैं कुछ लोग करबला ले जाकर कुछ लोगों के गले, हाथों और पैरों में ज़ंजीर डाल कर कुत्ते की शैली में घसीटना चाहते हैं और कुत्ते की तरह बुलाते हैं।
यह कौन सा मज़हब है?
यह कौन सी लॉजिक है?
यह कौन सी शरीअत है?
यह कौन से अहलेबैत अ. के बताये गए रास्ते के अनुसार हैं?
यह अहलेबैत अ. की बदनामी का कारण हैं, यह लोग हर दिन इमाम हुसैन अ. को शहीद कर रहे हैं।
वह यह दावा करते हैं कि वह इमाम हुसैन अ. पर रो रहे हैं!!!! इस तरह के काम कहां हैं दीन में??
क्या यह अहलेबैत अ. से लिया है?
क्या यह इमाम ने बताया है?
कहां किस हदीस से यह लिया गया है?
मेरे भाई कमज़ोर सी ही सही कोई एक रिवायत तो ले आओ, चलो इतिहास से ही कोई एक छोटा उदाहरण ही ले आओ।
क्या हमारे इमामों अ. ने हमसे ऐसा करने को कहा है? या फिर यह तुम हो जो ख़ुद से कर रहे हो?
क्या हमारे इमामों ने कर्बला और आशूरा को इस तरह से पेश करने को कहा है?
क्या हमारे इमामों ने उनकी शान को इस अंदाज़ से पेश करने को कहा है?
क्या ऐसी है कर्बला?
क्या हज़रत ज़ैनब स. का कैरेक्टर ऐसा है?
इसलिए यह एक अत्यंत दुखद, शर्मनाक और तकलीफ़दे बात है।
आख़िर क्या बात है कि तुम लोग रौज़ों की रक्षा करते समय नज़र नहीं आते?
तुम लोग हज़रत ज़ैनब स. के रौज़े की रक्षा करने में क्यूं दिखाई नहीं देते?
आख़िर क्या वजह है?
आख़िर क्यूं कुछ लोग इस बात पर ज़िद कर रहे हैं कि वह ख़ून को एक ग़ैर ज़रूरी काम के ख़ातिर बहाना चाहते हैं??
मैं बहुत सम्मान से यह पूछना चाहता हूं इस मुद्दे में नहीं पड़ना चाहता हूं।
मेरे भाई एक ग़ैर ज़रूरी और मतभेद वाले मुद्दे में क्यूं? मेरा मतलब ख़ूनी मातम से है
लेकिन यह लोग उस समय कहां होते हैं जब इस्लाम व मुस्लेमीन, रौज़े, इमामबाड़े, मदरसे और इमामों की इल्मी मीरास ख़तरे में होती है?
यह लोग उस समय कहां होते हैं? यह लोग उस समय नज़र क्यूं नहीं आते हैं?
यह लोग हमें किसी और वादी में ले जाना चाहते हैं।
हमने बहुत छूट दी, अनदेखी करते रहे, मैं उन लोगों में से था जिनका यह कहना था कि इस विषय को अच्छे उपदेश और आपसी बातचीत से हल किया जाए।
लेकिन हालात अत्यंत दुखद, शर्मनाक और तकलीफ़दे चरण में दाख़िल हो चुके हैं।
कर्बला सब्र का नाम हैं, कर्बला सम्मानपूर्वक धैर्य का नाम है, कर्बला सब्र करने वालों की जीत का नाम है, कर्बला सर उठा कर सब्र करने वालों का नाम है।
मज़बूत ईमान वालों के सब्र का नाम है जिन्होंने इस्लाम और इस उम्मत की रक्षा की है।
(आइए हम मिल कर तय करें कि इमाम हुसैन अ. और कर्बला के लिए इज़्ज़त का कारण बनें और वही करें जिनका हमारे इमामों ने हुक्म दिया है।)
source : abna24