अबनाः हमारे समाज में बच्चों के प्रशिक्षण से पहले मां-बाप का प्रशिक्षण करना ज्यादा ज़रूरी है। बच्चों की शिक्षा दीक्षा और उनके पालन पोषण में मां-बाप बहुत ज्यादा लापरवाही से काम लेते हैं लेकिन उनमें से अधिकांश को इस बात का आभास ही नहीं होता और जिनको कुछ एहसास हो भी जाए तो स्वीकार करने की हिम्मत कम ही जुटा पाते हैं।
मां बाप होने के नशे में की मां के पैरों तले जन्नत और बाप जन्नत का दरवाजा है, मां बाप अपनी जिम्मेदारियां अदा करने में बहुत ज्यादा लापरवाही बरतते हैं। मां-बाप की महानता से गदगद अपनी लापरवाहियों की ओर ध्यान होने और उनमें सुधार लाने के प्रति लापरवाही का रुझान उनमें पाया जाता है, ज़रूरी है कि उनकी कुछ गलतफहमियां आज दूर कर दी जाएं।
हमारे यहां माओं का सबसे बड़ा कारनामा, बच्चों को तकलीफ से जनना, अपना दूध पिलाना, खाना खिलाना और कपड़े पहनाना समझा जाता है और बाप का दिन रात बच्चों के लिए कमाना और सुविधाएं उपलब्ध करना काफी समझ लिया गया है। दूसरी तरफ यह भी सच्चाई है कि बच्चे पैदा करने का निर्णय उनका अपना होता है बच्चे की मांग पर यह काम अंजाम नहीं दिया जाता अपनी बेसिक जिम्मेदारी को उपकार समझकर पूरा करने के घमंड में मां बाप बच्चों के प्रशिक्षण से संबंधित अपनी दूसरी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से पूरी तरह लापरवाही बरतते हैं।
हमारे यहां आमतौर पर अपने बच्चों से बातचीत का कोई चलन नहीं है बच्चा क्या सोचता है अधिकतर मां-बाप को मालूम ही नहीं होता। ना ही वह जानते हैं न जानने की कोशिश करते हैं। आपका बच्चा अगर अपने अंदर उठने वाले सवालों, अपने आश्चर्यजनक विचारों, दुविदाओं, अपने डर, सोच और उनसे निकाले हुए गलत सही अनुमान में आपसे डिस्कस नहीं करता तो आप एक नाकाम मां बाप हैं। अगर बालिग होने के करीब वह अपने अंदर जिस्मानी और मानसिक परिवर्तनों में आपके डायरेक्ट दिशा निर्देश से वंचित रहता है तो आप एक नाकाम पैरेंट हैं। अगर उससे कोई गलती हो जाए और वह अंतरात्मा के पछतावे का शिकार हो और वह इस घुटन से नजात पाने के लिए आपको बता भी न पाए तो आप एक नाकाम मां बाप हैं। अगर उसे यह भरोसा न हो कि उसकी गलती पर डांट-डपट के बाद बल्कि मारपीट के बाद भी उससे संबंध नहीं तोड़ा जाएगा उसे घर से निकाल नहीं दिया जाएगा, बहन भाइयों, रिश्तेदारों में उसे बदनाम नहीं किया जाएगा तो आप एक नाकाम मां बाप हैं।
आम हालात में कोई नौजवान आत्महत्या नहीं कर सकता, कोई नशे का शिकार नहीं बन सकता, कोई किसी के प्यार में घर से भाग नहीं सकता, किसी बच्चे को साइकोलॉजिस्ट के पास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ सकती, किसी लड़की को हिस्टीरिया का दौरा नहीं पड़ सकता अगर उन बच्चों के अपने मां-बाप से सम्बंध अच्छे हों।
हमारे यहां आमतौर पर मां बाप और बच्चों के बीच बातचीत कुछ खास हिदायतों और निर्देशों तक सीमित रहती हैं। आप पूरे दिन में अपने बच्चों से अपनी बातचीत की समीक्षा कीजिए, आप उनसे क्या-क्या बातें करते हैं आपकी बातें खाना कपड़े दांत ब्रश नहाना होमवर्क को समय पर लिखना जैसे निर्देशों के अलावा आमतौर पर कुछ और नहीं होता बच्चे स्कूल से आते हैं तो ट्यूशन पढ़ने चले जाते हैं वहां से वापस आते हैं तो मौलाना साहब से कुरान और दीनियात पढ़ने का वक्त हो जाता है। उससे छूटते हैं तो TV और इंटरनेट पर कुछ देर कोई प्रोग्राम या चैटिंग में वक्त गुजारते हैं और उधर सोने का टाइम आ जाता है, मां-बाप के बाद बच्चों को देने के लिए वक्त ही नहीं ज्वाइंट फैमिली सिस्टम में तो वक्त निकालना और भी मुश्किल होता है।
हमारे यहां तो यह भी चलन है कि बच्चे को कोई बात समझानी हो तो परिवार वालों बल्कि बच्चे के दोस्तों यारों तक को उसकी शिकायतें लगा कर उसे समझाने के लिए कहा जाता है। ऐसे मां-बाप वास्तव में यह स्वीकार कर लेते हैं कि वह अपने बच्चों को कुछ समझाने की क्षमता नहीं रखते। वह बच्चा दूसरों की निगाह में भी छोटा बन जाता है। फिर यही बच्चे मां बाप से बातें ना करने की आदत के साथ जब बड़े होते हैं तो उनके लिए भी मां बाप का वजूद एक जरूरत या बचपन की यादगार से ज्यादा इंपॉर्टेंट नहीं होता।
उनका मां-बाप से कोई भावनात्मक संबंध और मानसिक निकटता नहीं होती जो बुढ़ापे में मां-बाप को उनसे दरकार होती है आखरी उम्र में जब मां किचन और बाप नौकरी से रिटायर्ड हो जाता है तो उन्हें बच्चों से बातें करने की जरूरत पड़ती है उस समय तक उनके दोस्त या रिश्तेदार या तो दुनिया से गुज़र चुके होते हैं या मौजूद नहीं होते। ऐसे में अपने दिल की बातें करने बातचीत करने के लिए उन्हें अपने बच्चों की ज़रूरत होती है। लेकिन उस समय बहुत देर हो चुकी होती है, मां-बाप भूल जाते हैं कि उन्होंने तो अपने और अपने बच्चों के बीच बातचीत की नींव ही नहीं रखी थी। कम्युनिकेशन गैप की गहरी खाई पाटने का समय अब गुजर चुका होता है। मां-बाप को दिल की बातें बताने के लिए तरसने वाला छोटा सा बच्चा जो कभी खुद से बातें करके दिल हल्का कर लिया करता था या अपनी आयु के किसी बच्चे या क्लास फेलो से बात करके सुकून ढूंढता था अब बड़ा हो गया है। उसने अपनी बातों के लिए दूसरे साथी को तलाश कर लिया है अब उसका संबंध भी मां-बाप से कुछ निर्देशों तक सीमित हो जाता है कि आपने दवा समय पर ले ली? आपने खाना खा लिया? मार्केट जा रहा हूं आपको कुछ मंगाना है तो नहीं है? मंगाना हो तो बताइए। आज दिल से दिल तक का रास्ता महीनों और वर्षों के रेत में पट चुका है उसका पलटना अब संभव नहीं है।
मां बाप की तकलीफ पर रो सकते हैं उनके इलाज पर अपना सब कुछ लुटा सकते हैं उनके लिए किसी से लड़ मर सकते हैं लेकिन इंसान की बेबसी का तमाशा देखिए की चाह कर भी उनके पास बैठ कर दो घड़ी बात नहीं कर सकते। उनके लिए मां बाप के शब्द उनके लिए अजनबी हो चुके होते हैं।
बड़ी आसानी से यहां मां बाप बच्चों पर आरोप लगा देते हैं कि वह बुढ़ापे में उनसे बात नहीं करते फिर वह अनुचित कहानी सुना दी जाती है कि एक बूढ़ा एक कौवे को देख कर बेटे से पूछता है कि वह क्या है बेटा कहता है कि कौआ है बाप बार-बार पूछता है बेटा झुंझलाकर कुछ सख्त शब्द कह देता है उस पर बाप डायरी लेकर आता है कि तुमने अपने बचपन में 20 बार कौवे के बारे में पूछा था कि यह क्या है और मैंने हर बार मुस्कुराते हुए तुम्हें बताया था कि कौवा है।
इस कहानी में लड़के के बचपन से एकदम जवानी की तरफ छलांग लगा दी गई है और बीच में यह नहीं बताया गया कि लड़का जब कुछ बड़ा हुआ था तब आपने उसके साथ प्यार तो किया था, खाना कपड़ा और दूसरी जरूरतें और इच्छाएं भी पूरी की थीं, लेकिन उसके साथ दिल की बात नहीं करते थे उसके दिल की बात नहीं सुनते थे। बाप से कुछ कहने के लिए उसे मां बाप भाई बहन में से बाप के किसी फेवरेट से कहलवाना पढ़ता था फिर उसके मां-बाप से बातचीत करने की जरूरत खत्म हो गई थी उसने अपने दोस्त या बहन भाइयों में से किसी को अपना दोस्त और राजदार बना लिया था।
इसलिए उसके दोस्त और उसके बहन भाई जिनसे उसकी बातचीत होती थी वह बुढ़ापे में भी अगर उसके पास आते हैं तो वह उनसे घंटों बातें करता है थकता नहीं है यही वह मां-बाप के साथ भी कर सकता था अगर बातों का संबंध पहले भी जारी रहता।
हमारे समाज में ऐसा वर्ग भी पाया जाता है जहां बाप का मतलब है ऐसा इंसान है जिससे एक डर और भय के साथ सम्मान और दूरी का रिश्ता रखा जाता है सामाजिक मूल्यों के तौर पर देखा जाता है बड़े गर्व से बताया जाता है कि हमने आज तक बाप के सामने जबान नहीं खोली बाप घर क्या आता है पूरे घर पर सन्नाटा तारी हो जाता है। बाप भी अपने इस स्टाइल पर सीना तान के चलता है लेकिन जब रिटायर्ड होकर चारपाई से लग जाता है तो उनकी सेवा करने वाले तो बहुत होते हैं लेकिन उनकी बातें करने वाला उनसे हंसी मज़ाक करने वाला कोई नहीं होता दिल की बात आप किसी से न कर सके इससे बढ़कर और क्या तकलीफ हो सकती है। बच्चों का मां-बाप से दूर रहने में पूरा कसूर उनका नहीं होता बल्कि ज्यादा तर मां-बाप का होता है आज अपने बच्चों के दिल ज़बान और कान से संबंध बनाईये चाकि कल वह आपकी बातें सुन सकें और आपका दिल बहला सकें वरना फिर शिकायत भी मत कीजिएगा।
मुंह लपेटे पड़े रहो नासिर
हिज्र की रात ढ़ल ही जाएगी।