क़तर ने सऊदी अरब की क्षेत्रीय स्थिति को भांपते हुए जो क्षेत्रीय मामलों में उलझा हुआ है और सीरिया व यमन में पराजय का मज़ा चख चुका है, रूस, तुर्की और ईरान सहित सऊदी अरब की नीतियों के विरोधी देशों से निकटता प्राप्त करते हुए स्वयं को दबाव से दूर रखने का प्रयास किया।
सऊदी अरब और उसके घटकों द्वारा पेश की गयी शर्तों को रद्द करके क़तर ने सारी अटकलों पर विराम लगा दिया। जिस प्रकार से सऊदी अरब और उसके घटकों ने क़तर के सामने 13 शर्तें रखी थीं, ठीक उसी प्रकार क़तर ने भी हर शर्त पर अपनी ओर से एक शर्त लगा कर सऊदी अरब और उसके घटक पंडितों के सारे समीकरण बिगाड़ दिए।
शुरुआत में सऊदी अरब और उसके घटक सोच रहे थे कि मीडिया के भीषण दबाव से दोहा को शर्तें स्वीकार करने पर मजबूर कर देंगे किन्तु क़तर ने भी भीषण दबाव के बाद पहले तो कोई जवाब नहीं और जब जवाब दिया कि वह सऊदी अरब और उसके घटकों के लिए बम साबित हुआ। सऊदी अरब और उसके घटकों ने सबसे पहले क़तर से कूटनयिक संबंध तोड़ते हुए इस देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए ताकि यह छोटा देश घुटने टेकने पर विवश हो जाए और जब यह योजना सफल न हुई तो तो उन्होंने अपनी शर्तों का जवाब देने के लिए दोहा को दस दिन का समय दिया और फिर उसमें दो दिन की अवधि बढ़ा दी किन्तु इसमें भी उन्हें कोई सफलता हाथ नहीं लगी और क़तर ने हर शर्त के साथ अपनी एक शर्त लगा दी थी।
सऊदी अरब और उसके घटकों ने तंग आकर घोषणा की कि उनका लक्ष्य, दोहा का व्यवहार बदलना है और दोहा को उनके अनुसार, आतंकवाद और आतंकवादी गुटों का समर्थन समाप्त कर देना चाहिए। सऊदी अरब एेसी स्थिति में क़तर पर आंकवाद के समर्थन का आरोप लगा रहा है कि यह देश सीरिया में आतंकवादी गुटों की यथावत वित्तीय और सामरिक सहायता कर रहा हैं। दूसरी ओर ग्यारह सितंबर की घटना में इस देश की भूमिका से दुनिया इन्कार नहीं कर सकती और दुनिया और क्षेत्र में यह देश बढ़ चढ़कर कट्टरपंथी या वहाबी विचार धाराओं का प्रचार कर रहा है।
सऊदी अरब क्षेत्र में क़तर के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है क्योंकि वह स्वयं को बहुत बड़ा खिलाड़ी समझता है इसीलिए वह क़तर के सामने झुकना नहीं चाहता है और यही कारण है कि वह अभी तक क़तर को अपनी अपनी मांगें स्वीकार करने पर मजबूर नहीं कर सका। अब जब क़तर ने सऊदी अरब और उसके घटकों की मांगों को रद्द कर दिया है तो रियाज़ और उसके घटकों का दोहा के विरुद्ध अगला क़दम क्या होगा? टीकाकारों का कहना है कि दोहा के विरुद्ध सऊदी अरब की अगली कार्यवाही यह हो सकती है कि वह इस देश पर अधिक प्रतिबंध लगा दे और यदि इससे भी वह नहीं माना तो फ़ार्स की खाड़ी सहयोग परिषद में उसकी सदस्यता ही समाप्त कर दे किन्तु ओमान और कुवैत जैसे देशों के विरोध के कारण सऊदी अरब भी इसमें सफल होता दिखाई नहीं पड़ता।
सऊदी अरब, दोहा के विरुद्ध सैन्य मोर्चा खोलने की स्थिति में नहीं है क्योंकि सीरिया, इराक़ और यमन में उसे सैन्य मोर्चों पर भारी पराजय का सामना करना पड़ रहा है और वह नया मोर्चा ख़ोलने की स्थिति में नहीं है और क़तर में सऊदी अरब तथा तुर्की के सैनिकों की उपस्थिति के कारण तो सऊदी अरब, क़तर के विरुद्ध नया सैन्य मोर्चा खोलने का सोच भी नहीं सकता। बहरहाल यह संकट सऊदी अरब और उसके घटकों के गले की फांस बन गया है जिसे न तो वह निकल पा रहे हैं और न ही उगल पा रहे हैं।