इज़्ज़त और सम्मान उस हालत को कहा जाता है जिसको पाने के बाद इंसान इतना मज़बूत महसूस करता है कि जिसके बाद इंसान कितने भी सख़्त हालात और कठिन परिस्तिथियों से ही क्यों न गुज़र रहा हो लेकिन वह जब तक ख़ुद को एक सम्मानित और इज़्ज़तदार महसूस करेगा कभी इन हालात के सामने हार नहीं मान सकता। (अल-मुफ़रदात फ़ी ग़रीबिल-क़ुर्बान, माद्दए इज़्ज़त)
सम्मान पाना और इज़्ज़त को हासिल करना इंसान की प्रकृति में शामिल है, और जो भी इसे पाना चाहता है उसका हक़ीक़ी रास्ता अल्लाह की ज़ात है, जैसाकि उसने क़ुर्आन में फ़रमाया कि जो भी सम्मान के पीछे है उसे अल्लाह की ओर ध्यान देना चाहिए इसलिए कि सारा सम्मान अल्लाह के लिए है। (सूरए फ़ातिर, आयत 10) अल्लाह ही है जो हर सम्मान और इज़्ज़त का स्रोत है, और वह सम्मान उसी को देता है जो सच्चे दिल और पूरे ध्यान से उसकी इबादत करे, जैसाकि पैग़म्बर स.अ. फ़रमाते हैं कि, तुम्हारा ख़ुदा हर दिन यह ऐलान करता है कि मैं इज़्ज़त वाला हूं, सम्मान मेरे पास है जिसको दुनिया और आख़िरत की इज़्ज़त चाहिए वह मेरी पैरवी करे। (बिहारुल अनवार, जिल्द 68, पेज 121)
आज समाज में बहुत से लोग सम्मान और प्रतिष्ठा को बड़े लोगों, अधिक दौलत और लक्ज़री ज़िंदगी में तलाश करते हैं, जबकि यह ग़लत सोंच बहुत सारे गुनाह और अत्याचार को जन्म देती है, और हम देखते हैं पैसे और बड़े लोगों से संबंध में सम्मान तलाश करने वाला कभी अपने आप को सम्मानित महसूस नहीं कर पाता क्योंकि सम्मान, इज़्ज़त और प्रतिष्ठा का स्रोत अल्लाह है, और इंसान रुपया पैसा, माल दौलत और दुनियादारी के पीछे भागने के बजाए केवल गुनाह को छोड़ दे सम्मान तक ख़ुद पहुंच जाएगा, जैसाकि इमाम हसन अ.स. फ़रमाते हैं कि, जब भी बिना किसी बड़े लोगों के सहारे और दुनिया की पीछे भागे सम्मान चाहो और बिना हुकूमत के लोगों के दिलों में अपना दबदबा पैदा करना चाहो तो गुनाह की गंदगी से बाहर रहो और इज़्ज़त के मालिक की पैरवी करो। (बिहारुल अनवार, जिल्द 44, पेज 139)
इतिहास गवाह है कि बहुत से लोगों ने सम्मान और इज़्ज़त पाने के लिए साम्राज्यवादी हुकूमतों से हाथ मिला लिया, और उनके घटिया कामों में शामिल हो कर और दुनिया के चकाचौंध और रंगीनियों में घुस कर सम्मान पाना चाहा, लेकिन वहीं इतिहास के पन्नों में एक हस्ती ऐसी भी है जिसने 1300 साल पहले शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अ.स. ने इन लोगों के विपरीत बातिल और साम्राज्यवादी हुकूमत से ख़ुद को अलग कर के ऐसी हुकूमत में जीने से बेहतर मौत को समझा और फ़रमाया माविया की औलाद यज़ीद ने मुझे क़त्ल होने और अपमानित ज़िंदगी के बीच ला कर खड़ा कर दिया है, लेकिन मैं कभी अपमानित ज़िंदगी नहीं गुज़ार सकता, क्योंकि इसे अल्लाह उसका रसूल स.अ. और अहले बैत अ.स. कभी पसंद नहीं करते, मैं साम्राज्यवादी ताक़त यज़ीद का डट कर मुक़ाबला करूंगा और शहादत को अपमानित ज़िंदगी के मुक़ाबले ज़्यादा पसंद करूंगा, और ख़ुदा की क़सम यज़ीद जो मुझ से चाहता है मैं कभी उसे अंजाम नहीं दूंगा, यहां तक कि ख़ून में लतपथ अल्लाह की बारगाह में हाज़िर हो जाऊंगा। (बिहारुल अनवार, जिल्द 24, पेज 9)
आज भी बहुत से अनपढ़, जाहिल और कट्टर लोग साम्राज्यवादी ताक़तों से हाथ मिला कर अपने हाथों को मासूमों के ख़ून से रंगीन किए हुए हैं, और मासूमों और मज़लूमों के ख़ून से हाथ रंग कर वह सम्मान और इज़्ज़त की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं, ऐसे लोग अपनी शैतानी सोंच को इस तरह बयान करते हैं कि सम्मान, प्रतिष्ठा और स्वतंत्रता को मतलब अलगाव है कि किसी भी तरह सब से अलग हो कर अपना साम्राज्य खड़ा किया जाए, जबकि ऐसा करते हुए इंसान मर के दुनिया से चला भी जाए तब भी सम्मान नहीं पा सकता और इसी बात को इमाम हुसैन अ.स. ने अपनी शहादत से कुछ क्षण पहले भी पूरी दुनिया के सामने बयान करते हुए कहा, कि मुझे मौत से कोई डर नहीं, साम्राज्यवादी ताक़तों से मुक़ाबला करते हुए मर जाना ही सम्मानजनक मौत है, और सम्मानजनक मौत ही मरने के बाद भी इंसान को हमेशा के लिए ज़िंदा रखती है, क्या तुम लोग मुझे मौत से डराते हो, यह तुम लोगों का भ्रम है, मैं कभी भी मौत से डर कर बातिल और साम्राज्यवादी ताक़त से हाथ मिला कर उनकी अपमानजनक ज़िंदगी और अत्याचारों में शामिल नहीं हो सकता, अल्लाह की राह में आई हुई मौत पर दुरूद और सलाम हो, और याद रखना तुम लोग मुझे मार कर मेरे सम्मान, मेरी प्रतिष्ठा और मेरी शराफ़त को कम नहीं कर सकते, मैं मौत से बिल्कुल नहीं डरता। (बिहारुल अनवार, जिल्द 1, पेज 581)
इमाम हुसैन अ.स. ने कर्बला में साबित कर दिया कि सम्मान, इज़्ज़त और प्रतिष्ठा को न पैसे और हुकूमत से हासिल किया जा सकता है न ही भीड़ भाड़ जमा कर के साम्राज्य से हासिल किया जा सकता है, बल्कि अल्लाह की पैरवी और गुनाह से दूरी कर के ही समामान हासिल किया जा सकता है।