पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
وَاِنّى لَغَفّارٌ لِمَنْ تابَ وَآمَنَ وَعَمِلَ صَالِحاً ثُمَّ اهْتَدى
वा इन्नी लग़फ़्फ़ारुन लेमन ताबा वाआमना वाअमेला सालेहन सुम्मा तदहा
सुरए ताहाः20 छंद 82
हक़ की ओर वापसी
पापी तथा पश्चाताप पर कुदरत
किसी भी माँ ने इस ब्रह्मांड मे दोषी (पापी, अपराधी) बच्चे को जन्म नही दिया है, और ना ही कोई बच्चा इस संसार मे अपराधी अथवा पापी आया है।
जिस समय बालक जीवन के अखाड़े मे क़दम रखता है तो वह ज्ञान तथा सोच विचार की शक्ति से खाली होता है, तथा जो कुच्छ अपने चारो ओर होता हुआ देखता है वह उस से पूर्णरुप से अनजान होता है।
जब बच्चा इस संसार मे आता है तो रोने एवं दूध पीने के अलावा कुच्छ नही जानता, जबकि प्रारम्भिक क्षणो मे रोने की हालत मे दूध पीने से भी अज्ञात होता है। भावनाऐ वासना एवं जनुन की गतिविधिया धीरे धीरे प्रारम्भ होती है, जीवन व्यतीत करने हेतु जिन चीजो की आवश्यकता होती है उनको अपने परिवार एवं स्वभाविक बातचीत से सीखता है।
जारी