पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
इसके पूर्व लेख मे यह बात स्पष्ट की गई कि आदम और हव्वा को स्वर्ग से निष्कासित कर दिया गया, ज्ञान और उनका ख़लीफ़ा होना तथा एन्जिल्स (स्वर्गदूतो) का मसजूद होना कुच्छ भी उनके काम नही आया, वह स्थान (अथवा स्थिति) जो उन्हे प्रदान किया गाया था उस से उनका पतन हो गया, उत्तरजीविता के लिए पृथ्वी पर आ गए। निकटता के स्थान (मक़ामे क़ुर्ब) से दूरी, स्वर्गदूतो की साहचर्यता का समापन, तथा स्वर्ग से निकास, ईश्वर के आदेश से लापरवाही और शैतान की आज्ञा का पालन, उनके जीवन पर भारी शोक कठिन दुःख तथा दर्दनाक है। जेल से कुख्यात एंव सीमित स्वार्थ, महबूब के ध्यान और दया के अभाव का स्वयं देखना ईश्वर के अलावा दूसरे के सामने गिर जाना है, मित्रो के साथ दुनिया मे हितो के पर्रावरण प्यार विश्वास तथा जागरूकता के माहौल मे प्रवेश, परलोक मे मानव के लिए अतयंत लाभदायक है। इस लेख मे आप इस बात का अध्ययन करेगें कि किस प्रकार आदम ने पश्चाताप किया।
जैसी ही इस बात की ओर ध्यान गया कि अहंकार की कैद स्वार्थ और लालच तथा ईश्वर की याद से लापरवाही मे घिरा तथा खुदखाही, गर्व और लालच मे पड़ गया था तो फ़रयाद की (ज़लमना अनफ़ोसना) हमने अपने ऊपर अत्याचार किया।
अपनी स्थिति की ओर ध्यान देना, स्वतंत्रता के दायरे तथा शैतान के धोखे से बचने की भूमिका, तथा महबूब की ओर से लोकप्रियता, और अल्लाह के सामने विनम्रता का कारण है, यदि शैतान भी इस तरह व्यवहार करता तो ईश्वर के यहा से भगाया ना जाता और सदैव के लिए लानती ना बनता।
सोच विचार, अक़ल और ध्यान, दृष्टि और जागरुकता, खेद तथा पश्चाताप के आँसू के उज्जवल पर्रावरण मे आदम और हव्वा ने इस प्रकार विनीत भाव एंव विनम्रता दिखाई किः (इग़फ़िर लना) हमे क्षमा कर दे नही कहा, बलकि उन्होने कहाः (वइन लम तग़फ़िर लना) यदि हमे क्षमा नही किया और हम पर कृपा नही की (लनकूनन्ना मिनल ख़ासेरीन) तो निसंदेह हम हानि उठाने वालो मे से हो जाएंगे[1]।
जारी
[1] اغْفِر لَنا وَاِنْ لَمْ تَغْفِرْلَنا لَنَكُونَنَّ مِنَ الْخاسِرينَ
सुरए आराफ़ 7, छंद 23 (इग़फ़िर लना वइन लम तग़फ़िर लना लनकूनन्ना मिनल ख़ासेरीन)