पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
इसके पूर्व के लेख मे हमने इस बात का वर्णन किया था कि उस जवान ने पर्वत पर जाकर चालीस दिनो तक पश्चाप करने के पश्चात उसने अपने दोनो हाथो को भगवान के सामने ऊपर करके कहाः हे पालनहार! यदि मेरी प्रार्थना स्वीकार और मेरे पाप क्षमा कर दिए गए है तो अपने दूत (पैग़म्बर) को सूचित कर दे, और यदि मेरी प्रार्थना स्वीकार और पापो को क्षमा नही किया है तथा मेरे ऊपर अज़ाब भेजने की इच्छा रखता हो तो मेरे ऊपर नर्क की आग भेज दे ताकि मै जल कर भस्म हो जाऊ आथवा किसी दूसरे अज़ाब मे डाल दे ताकि मै हलाक हो जाऊ, और प्रलय के दिन के अपमान से मुझे निजात मिल जाए। इस लेख मे आपको इस बात का अध्यन करने को मिलेगा कि उसकी पश्चाताप किस प्रकार स्वीकार हुई और निम्मलिखित छंद उतरी और पैगम्बर ने उस जवान के समबंध मे क्या कहा तथा अपने सहाबियो से क्या कहा।
أُولئِكَ جَزَاؤُهُم مَغْفِرَةٌ مِن رَبِّهِمْ وَجَنَّاتٌ تَجْرِي مِن تَحْتِهَا الاْنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا وَنِعْمَ أَجْرُ الْعَامِلِينَ
“ऊलाएका जज़ाओहुम मग़फ़ेरतुम मिर्रब्बेहिम वा जन्नातुन तजरि मिन तहतेहलअनहारो ख़ालेदीना फ़ीहा वानैमा अजरुल आमेलीन”[1]
“यही वह लोग है जिनकी जज़ा (इनाम) मग़फ़ेरत है तथा वह स्वर्ग है जिसके नीचे नहरे बह रही है। वो सदैव उसी मे जीवन व्यतीत करने वाले है तथा अमल करने की यह सर्वश्रेष्ठ इनाम है”।
इन दोनो छंदो के उतरने के बाद पैग़म्बरे अकरम सललल्लाहोअलैहेवाआलेहिवसल्लम मुसकुराते हुए इन दोनो छंदो को पढ़ते हुए बाहर पधारे और उन्होने कहाः कोई है जो मुझे उस पश्चाताप करने वाले जवान तक पहुंचाए?
मआज़ पुत्र जबल कहते हैः हे ईश्वर दूत हमे सूचना मिली है कि वह जवान मदीने से बाहर पर्वतो मे छुपा हुआ है, अल्लाह के रसूल अपने सहाबियो के साथ पर्वत तक गए परन्तु वह नही मिला तो फ़िर पर्वत की ऊचाई पर पहुंचे तो उसे दो पत्थरो के बीच देखा कि अपने दोनो हाथ अपनी गर्दन से बांधे हुए है, भीष्ण गर्मी के कारण उसके चेहरे का रंग काला हो गया है अधिक रोने से उसकी पलके गिर चुकी है तथा कहता जा रहा है हे मेरे मौला व सरदार! मेरा जन्म अच्छा किया मुझे सुंदर बनाया मुझे ज्ञान नही कि मुझ से समबंधित तेरी इच्छा क्या है क्या मुझे नर्क की आग मे स्थान प्रदान करेगा या अपने समीप स्थान प्रदान करेगा।
जारी