पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
इसके पूर्व के लेख मे हमने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथन अनुसार दुनिया की विशेषता को बताया गया और दुनिया वालो की विशेषताओ को भी बताया अब इस लेख मे दुनिया के समबंध मे अंतिम बात बताने जा रहे है जिस मे दुनिया वालो की शेष विशेषताओ के समबंध मे हजरत मुहम्मद ने जो ईश्वर से प्रशन किया उसका अध्ययन करेंगे।
यह लोग आराम और शांति के समय शुक्र और बला एंव कष्ट मे धैर्य नही रखते दूसरो को अपमानित समझते है, न किये हुए कार्यो पर अपनी प्रशंसा करते है तथा जिनके मालिक नही होते स्वयं को उनका मालिक होने पर दावा करते है, अपनी इच्छाओ को दूसरे से व्यक्त करते है, दूसरे मनुष्यो की बुराई को फ़ैलाते तथा उनकी अच्छाईयो को छिपाते है, हजरत मुहम्मद (स.अ.व.अ.व.) ने कहाः हे पालन हार इन ऐबो के अतिरक्त भी कोई दूसरा ऐब पाया जाता है? आवाज़ आई: हे अहमद! दुनिया वालो के ऐब अधिक है, इनमे मूर्खता एंव अपरिवक्वता (नादानी) पायी जाती है, अपने शिक्षक के सामने विनम्रता से पेश नही आते, स्वयं को बहुत बड़ा ज्ञानी समझते है, जबकि वह ज्ञानियो के समीप मूर्ख होते है।[1]
यदि कोई व्यक्ति अपने पापो से पश्चाताप कर ले परन्तु पश्चाताप के साथ भौतिक चमक दमक मे गिरफ्तार हो तो क्या उसकी पश्चाताप शेष रह सकती है? तथा पश्चाताप के मैदान मे दृढ़ रह सकता है?
पश्चाताप करने वाला यदि इस प्रकार की वस्तुओ के प्रभाव से स्वतंत्र न हो तो फ़िर उसके लिए वास्तविक रूप से पश्चाताप करना असम्भव है, क्योकि ऐसा मनुष्य पश्चाताप तो कर लेता है, किन्तु जैसे ही भौतिक वस्तुए ने आक्रमण किया तो वह अपनी की हुई पश्चाताप को तोड़ लेता है।