पुस्तकः पश्चाताप दया की आलिंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
5- पश्चाताप स्वीकार न होने के कारण
पापी व्यक्ति को यदि पश्चाताप करना का अवसर प्राप्त हो जाए तथा सभी आवश्यक शर्तो के साथ पश्चाताप कर ले तो निश्चित रूप से ईश्वर उसकी पश्चाताप को स्वीकार कर लेता है, परन्तु यदि उसने पश्चाताप के अवसर को हाथो से निकाल दिया और मृत्यु का समय आ गया हो और फ़िर वह अपने अतीत से पश्चाताप करे अथवा आवश्यक शर्तो के साथ पश्चाताप ना करे अथवा इमान लाने के बाद नास्तिक हो जाए तो ऐसे व्यक्ति की पश्चाताप कघापि स्वीकार नही हो सकती।
وَلَيْسَتِ التَّوْبَةُ لِلَّذِينَ يَعْمَلُونَ السَّيِّئاتِ حَتَّى إِذَا حَضَرَ أَحَدَهُمُ المَوْتُ قَالَ إِنِّي تُبْتُ الآنَ وَلاَ الَّذِينَ يَمُوتُونَ وَهُمْ كُفَّارٌ أُولئِكَ اعْتَدْنَا لَهُمْ عَذَاباً أَلِيماً
वलैसत्तोबतो लिल्लज़ीना यामलूनस्सय्येआते हत्ता एज़ा आहदहोमुलमौतो क़ाला इन्नी तुब्तुलआना वलल्लज़ीना यमूतूना वहुम कुफ़्फ़ारुन ऊलाएका आतदनालहुम अज़ाबन अलीमा[1]
“और पश्चाताप उन व्यक्तियो के लिए नही है जो पूर्व मे बुराईया करते है तथा फिर जब मृत्यु सामने आ जाती है तो कहते है अब हमने पश्चाताप कर लिया और ना उन व्यक्तियो के लिए है जो नास्तिक अवस्था मे मर जाते है कि हमने उनके लिए बहुत पीड़ा दायक यातना उपलब्ध कर रखी है”।
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا بَعْدَ إِيمَانِهِمْ ثُمَّ ازْدَادُوا كُفْراً لَن تُقْبَلَ تَوْبَتُهُمْ وَأُولئِكَ هُمُ الضَّالُّونَ
इन्नल लज़ीना कफ़रू बादा इमानेहिम सुम्मा इज़्दादू कुफ़रन लन तुक़बला तौबताहुम वा ऊलाएका होमुज़्ज़ालेमून[2]
“जिन लोगो ने नास्तिकता का चयन किया और फिर नास्तिकता मे आगे बढ़ते ही चले गए उनकी पश्चाताप कघापि स्वीकार ना होगी और वह वास्विक रूप से भटके हुए है”