पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
इस लेख के पूर्व लेख मे इस बात को उल्लेखित किया गया है कि अबु बसीर ने अपने पड़ौसी से कई बार विनम्रता से कहा परन्तु उसने अबु बसीर की बात पर कोई ध्यान नही दिया तथा अबू बसीर ने अम्र बिलमारूफ़ और नही अनिलमुनकर करने मे कोई लापरवाही नही की जिसका परिणाम यह हुआ कि एक दिन स्वयं उसने अबु बसीर से कहा कि मै शैतान के जाल मे फंसा हुआ हूँ, यदि मेरी स्थिति को अपने मौला इमाम सादिक़ से बयान करे आशा है कि वह ध्यान देंगे और मुझ पर एक मसीहाई नज़र डाल कर मुझे इस गंदगी और भ्रष्टाचार से निकाल देंगे। अब इस लेख मे आगे के हाल का अध्ययन करने को मिलेगा।
अबू बसीर कहते हैः मैने उसकी बातो को सुनकर स्वीकार कर लिया, एक समय पश्चात जब मै मदीना इमाम सादिक़ के पास गया तथा अपने उस पड़ौसी के हालात इमाम को सुनाए और इस सम्बिंधत अपनी समस्याओ को भी इमाम से कहा। तो,
इमाम ने पूरे हालात सुनकर कहाः जब तुम कूफ़े पहुंचोगे तो वह व्यक्ति तुम से मुलाक़ात करने के लिए आएगा, तो मेरी ओर से उस से कहनाः यदि तुम अपने सारे बुरे एंव व्यर्थ के कार्यो को तथा पापो को त्याग दो तो मै तुम्हारे स्वर्ग का गारंटर हूँ।
अबु बसीर कहते है किः जब मै कूफ़े वापस लौटा तो मेरे मित्र मुझ से मिलने आए और वह व्यक्ति भी मिलने आया, कुच्छ समय पश्चात जब वह जाने लगा तो मैने उस से कहाः रुको मुझे तुम से कुच्छ बात चीत करना है, जब सब लोग चले गए तथा उसके अलावा कोई नही रहा तो मैने इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का संदेश उस तक पहुंचा दिया, और कहा कि इमाम सादिक़ ने तुझे सलाम कहलवाया है।
पड़ौसी ने आश्चर्य से प्रश्न कियाः तुम्हे अल्लाह की सौगंध! क्या वास्तव मे इमाम सादिक़ ने मुझे सलाम कहलवाया है? और पापो से पश्चाताप करने से वह मेरे लिए स्वर्ग के गारंटर है? मैने सौगंध खाई कि इमाम अलैहिस्सलाम ने सलाम के साथ यह संदेश तुम्हारे लिए भेजा है।
जारी