पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
जाबिर जोफ़ी अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम की पाठशाला (मकतब) के सर्वाधि विश्वानीय रावीयो मे से थे, उन्होने हज़रत मुहम्मद सललल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम से रिवायत की हैः तीन यात्रीत्रा यात्रा करते हुए एक पर्वत की गूफा मे पहुंच कर इबादत मे व्यस्त हो गए, अचानक एक पत्थर ऊपर से लुढक कर गूफा के द्वार पर आलगा उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे द्वार बंद करने के लिए ही उसका निर्माण किया गया हो, उन लोगो को वहां से निकास का कोई मार्ग दिखाई नही दिया।
कष्टप्रद होकर उन्होने एक दूसरे से कहाः ईश्वर की सौगंध यहा से निकासी का कोई मार्ग नही है, मगर यह कि भगवान ही कोई दया व कृपा करे, कोई अच्छा कार्य करें, सच्चे दिल से प्रार्थना करें तथा अपने पापो से पश्चाताप करें।
उनमे से एक व्यक्ति कहता हैः हे पालनहार तू तो जानता है कि मै एक सुंदर महिला का प्रेमी हो गया था उसे बहुत अधिक धन दिया ताकि वह मेरे पास आजाए, किन्तु जैसी ही उसके समीप गया, नर्क की याद आगई जिसके परिणाम स्वरूप उस से अलग हो गया, पालनहार तुझे मेरे उस कार्य का वास्ता हम से इस मुसिबत को दूर कर तथा हमारे लिए मोक्ष के मार्ग का प्रबंध कर, जैसे ही उसने यह प्रार्थना की तो वह पत्थर थोड़ा सा खिसक गया।
जारी