पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
मआज़ पुत्र जबल ने रोते हुए ईश्वरीय दूत हज़रत मुहम्मद सललल्लाहोअलैहेवाआलेहिवसल्लम के पास उपस्थित होकर सलाम किया, हज़रत मुहम्मद सललल्लाहोअलैहेवाआलेहिवसल्लम ने सलाम का उत्तर देते हुए मआज़ से रोने का कारण पूछा तो मआज़ ने कहा कि एक सुंदर किशोर मस्जिद के निकट खड़ा हुआ इस प्रकार रो रहा है जैसे उसकी माँ की मृत्यु हो गई है, वह आपसे मिलने की इच्छा रखता है यह सुनकर मुहम्मद सललल्होअलैहेवाआलेहिवसल्लम ने कहा कि उसको मस्जिद मे भेज दो, उस जवान ने मस्जिद मे प्रवेश करने के उपरांत हज़रत मुहम्मद को सलाम किया, तो आप ने सलाम का उत्तर देते हुए उससे रोना का कारण पूछा तो उसने उत्तर दिया कि मै क्यो ना रोऊ क्योकि मैने ऐसे ऐसे पाप किए है ईश्वर उनमे से कुच्छ पापो के कारण मुझे नर्क मे भेज सकता है, मेरी यह इच्छा है कि मुझे मेरे पापो के बदले मे कठोर से कठोर सज़ा दी जाए क्योकि ईश्वर मुझे बिलकुल भी क्षमा नही कर सकता।
हज़रत मुहम्मद सललल्लाहोअलैहेवाआलेहिवसल्लम ने कहाः क्या तू ने ईश्वर के साथ बहुदेववाद (शिर्क) किया है? उसने उत्तर दियाः नही मै बहुदेववाद से आश्रय (पनाह) चाहता हूँ, पैगम्बर ने कहाः क्या किसी की हत्या की है? उसने उत्तर दियाः नही, पैगम्बर ने कहाः ईश्वर तेरे पापो को क्षमा कर देगा यदि तेरे पाप बड़े बड़े पर्वतो के समान भी है, उसने कहाः मेरे पाप बड़े बड़े पर्वतो से भी अधिक बड़े है, उस समय पैगम्बर अकरम ने कहाः भगवान तेरे पापो को अवश्य क्षमा कर देगा चाहे वह सातो आकाश, ज़मीन, समुद्र, वृक्ष, कण एंव पृथ्वी पर दूसरे जीव जन्तुओ के बराबर ही क्यो न हो, निसंदेह तेरे पाप क्षमा योग्य है यदि उनकी संख्या आसमान, सितारे और अर्श एंव कुर्सी के बराबर ही क्यो न हो ! उसने कहाः मेरे पाप इन सारी चीज़ो से भी अधिक बड़े है ! पैगम्बर ने क्रोधित होकर उसकी ओर देखा तथा कहाः हे जवान ! तेरे ऊपर खेद है क्या तेरे पाप अधिक बड़े है या तेरा ईश्वर अधिक बड़ा है?
जारी