पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
इस लेख से पहले वाले लेख मे इस बात की व्याख्या की थी कि जब पैग़म्बर को तबूक के युद्ध की समस्या आई थी तो उस युद्ध मे तीन व्यक्तियो ने भाग नही लिया था जिस के कारण पैगम्बर उनसे नाराज़ थे उन लोगो ने पैगम्बर के वापस लौटने के बाग क्षमा मांगी थी किन्तु पैगम्बर ने सभी मुसलमानो से उनके साथ बात तक करने का मना कर दिया था जिसके कारण उन लोगो का बाइकॉट किया था। इस लेख मे आपको इस बात का अध्यन करने को मिलेगा कि जब सब लोगो ने बाइकॉट किया तो फिर मदीने मे उनके लिए कोई स्थान नही बचा इसी लिए उन लोगो ने शहर छौड़कर जंगलो और पर्वतो की ओर चले गए।
मदीना शहर मे उनके लिए जीवन व्यतीत करने हेतु कोई स्थान शेष नही बचा हर ओर से उनका बाइकॉट होने लगा, यहा तक के उन लोगो ने इस समस्या के समाधान हेतु मदीने की पहाड़ीयो पर शरण ली।
इन सारी समस्याओ के अलावा एक बात और यह हुई कि जैसा कि स्वयं कआब का कहना है किः मै मदीने के बाज़ार मे क्रोधित हुआ बैठा था, उसी बीच एक ईसाई मुझे खोजता हुआ मेरे पास आया, जैसे ही उसने मुझे पहचाना ग़स्सान बादशाह की चिठ्ठी मुझे दी, जिसमे लिखा हुआ थाः यदि तुम्हारे मार्गदर्शक (पैग़म्बर) ने तुम्हारा बाईकॉट कर दिया है तो तुम हमारे यहा आ जाओ, कआब के हृदय मे आग जलने लगी और कहता हैः यह समय आ गया है कि इसलाम का शत्रु भी हमारे बारे मे विचार करने पर तैयार है!
इसके बावजूद कुच्छ समबंधियो के लिए भोजन ले जाते थे और भोजन उनके सामने रख दिया करते थे परन्तु उनसे बात नही करते थे।
पश्चाताप के स्वीकार होने की बहुत प्रतिक्षा की, कि ईश्वर की ओर से कोई छंद अथवा कोई निशानी आए ताकि मालूम हो जाए कि उनकी पश्चाताप स्वीकार हो गई है, उनमे से एक व्यक्ति ने कहाः सभी व्यक्तियो ने यहा तक कि हमारे परिवार वालो ने भी हमसे समबंध तौड़ लिए है आओ हम भी एक दूसरे से समबंध समाप्त कर लेते है, शायद ईश्वर के दरबार मे हमारी पश्चाताप स्वीकार हो जाए।
जारी