पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
उसके उपरांत हुर ने कहाः मुझे आपके साथ युद्ध करने का आदेश नही है, आप ऐसे मार्ग का च्यन कर सकते है कि जो ना मदीना जाता हो और ना कूफा, शायद इसके बाद कोई ऐसा आदेश आए कि मै इस समस्या से मोक्ष पा जाऊँ, उसके बाद सौगंध याद करके इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहा या अबाअब्दिल्लाह!! यदि युद्ध करेंगे तो क़त्ल हो जाएंगे।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहाः तू मुझे मौत से भयभीत कराता है तुम्हारी हिम्मत यहाँ तक पहुँच गई है तुम मुझे क़त्ल करने की इच्छा रखते हो उसके पश्चात दोने सेनाए निकल पड़ी, रास्ते मे कूफ़े से इमाम अलैहिस्सलाम के सहायक आ पहुंचे, हुर ने उन्हे गिरफ़तार करके कूफ़े भेजने का इरादा किया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने रोकते हुए कहाः जिस प्रकार मै अपने प्राणो की रक्षा करता हूँ उसी प्रकार मै उनका भी संरक्षण करूंगा, यह सुनकर हुर ने अपना आदेश वापस ले लिया, तथा वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ हो गए।
अंतः इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को कर्बला मे घेर लाए, यज़ीद की सेना की टुकडिया धीरे धीरे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने के लिए एकत्रित होने लगीं, तथा उसकी सेना की संख्या मे वृद्धि होती गई, उमरे सआद यज़ीदी सेना का सरदार था हुर भी यज़ीद की सेना के सरदारो मे से एक सेनापति था।
जारी