पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
हजरत युसुफ़ ने कहाः मैने तुम को क्षमा कर दिया, तुम्हे कोई कुच्छ नही कहेगा, कोई सज़ा नही मिलेगी, मै कोई सन्निहित नही लूंगा, और ईश्वर भी तुम्हारे पापो को क्षमा कर देगा।
जी हा दिव्य प्रतिनिधी इसी प्रकार होते है, दया एंव कृपा करते है, सन्निहिति की आग उनके हृदयो मे नही होती, कीना नही होता, अपने शत्रु के हेतु भी ईश्वर से दया एंव क्षमा की विनती करते है, उनका हृदय ईश्वर के प्राणीयो की निसबत प्रेम से परिपूर्ण होता है।
हजरत युसुफ़ ने अपने भाईयो को सज़ा ना देने से मुतमइन करके कहाः अब तुम लोग कनआन शहर की ओर पलट जाओ तथा मेरी कमीज़ को अपने साथ लेते जाओ, इसको मेरे पिता के चेहरे पर डाल देना, जिस से उनके आंखो का प्रकाश पलट आएगा, और अपने परिवार वालो को यहा मिस्र लेकर चले आओ।
यह दूसरी बार युसुफ़ के भाई आप की कमीज़ को पिता की सेवा मे लेकर जा रहे है, पहली बार इसी कमीज़ को मृत्यु का संदेश बनाकर ले गए थे, यह कमीज़ जुदाई की एक कहानी थी, और एक बुरी घटना का समाचार था, परन्तु इस बार यही कमीज़ जीवन के उपहार का नवेद तथा खुशखबरी का संदेश है।
पहली बार इस कमीज़ ने पिता को अंधा बना दिया, परन्तु इस बार हजरत युसुफ़ की कमीज़ ने पिता की आंखो को प्रकाश प्रदान किया, और खुशी का संदेश दिया।
जारी