दामग़ान नगर की जलवायु दो प्रकार की है। इसी कारण इस नगर में अधिकांश फल पाये जाते हैं। इस नगर के बाग़ों की महत्वपूर्ण पैदावार पिस्ता है जो पूरे ईरान में बहुत अच्छा माना जाता है। इसके अतिरिक्त अंगूर और फूट यहां के कृषि की महत्वपूर्ण पैदावार हैं।
दामग़ान नगर समुद्र की सतह से ११७० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यह राजधानी तेहरान से ३०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जिस व्यक्ति को भी ईसापूर्व सहस्त्राब्दी की ईरानी संस्कृति , सभ्यता और ईरानी लोगों के जीवन शैली की जानकारी होगी उसके लिए दामग़ान का नाम बहुत जाना पहचाना होगा। प्राचीनता के महत्व के कारण इतिहास की अधिकांश पुस्तकों में दामग़ान का उल्लेख किया गया है। मुक़द्दसी, इस्तखरी, इब्ने हौक़ल और याकूत हमवी जैसे पर्यटकों ने अपने यात्रावृतांतों में इस नगर की प्राचीनता एवं उसमें मौजूद एतिहासिक इमारतों का उल्लेख किया है। यद्यपि पुरातत्व वेत्ताओं को अभी तक सही तरह से इस नगर के इतिहास का ज्ञान नहीं हो सका है परंतु इस बात में कोई संदेह नहीं है कि प्राचीनता और सभ्यता की दृष्टि से कम ही नगर हैं जो दामग़ान की भांति हैं।
दामग़ान नगर ४०० वर्ष ईसापूर्व इतना आबाद व वकसित था कि २४९ वर्ष ईसापूर्व अश्के सिय्योम और तीरदाद अश्कानी ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। पहली ईसवी शताब्दी तक इस नगर का महत्व बाक़ी था और यह बड़े प्रांत “कूमस” का केन्द्र था। इस्लाम से पहले सिल्क रोड का यह सबसे महत्वपूर्ण नगर था। यानी पार्तियों के काल में इसे अश्कानी शासकों की राजधानी समझा जाता था। यूनानी उसे हकातिम पुलिस अर्थात सौ दरवाज़ों वाला नगर कहते थे।
दामग़ान नगर के टीले पर “तप्पये हेसार” और मौजूद दूसरे एतिहासिक अवशेष इस नगर के महत्व के जीवंत प्रमाण हैं।
दामग़ान, भौगोलिक परिस्थिति के कारण यानी खुरासान के पुराने रास्ते में स्थित होने के कारण राजनीतिक घटनाओं का साक्षी रहा एवं इसपर सैनिक आक्रमण हुए जिससे दामग़ान को बहुत क्षति पहुंची। वर्ष ६२४ हिजरी कमरी में शरफुद्दीन खारज़्मी ने दामग़ान के बहुत से लोगों की हत्या कर दी। उसे अरग़ून खां मंगोल ने खुरासान का शासक बनाया था और वह रय शहर से खुरासान जा रहा था। रास्ते में उसने दामग़ान के बहुत से लोगों की हत्या कर दी और इस नगर तथा उसके आस पास के गांवों के बहुत से घरों को भी ध्वस्त कर दिया। मंगोल शासक चंगेज़ खान के परपोते तैमूर लंग ने भी ७६९ हिजरी कमरी में तातारवासियों की हत्या के साथ बहुत से दामग़ान वासियों की भी हत्या कर दी।
दामग़ानवासियों पर तातारवासियों को शरण देने का आरोप था।
एतिहासिक नगर दामग़ान बहुत से सांस्कृतिक अवशेषों से समृद्ध है। एतिहासिक इमारत “क़लये गिर्द कूह” “तप्पये हेसार” “जामेअ मस्जिद” “इमाम ज़ादा जाफर” “तोग़रोल मीनार” “तारीखाना मस्जिद” “चश्मये अली समूह” शाह अब्बासी और सिपहसालार कारवांसरा/ दामग़ान के महत्वपूर्ण एतिहासिक अवशेष हैं जिनमें से कुछ का संबंध ४०० वर्ष ईसापूर्व से है। चूंकि दामग़ान के एतिहासिक अवशेषों के मध्य कुछ को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है।
दामग़ान नगर के दक्षिणपूर्व में दो किलोमीटर की दूरी पर “तप्पये हेसार” नाम का टीला है। ईरानी सभ्यता को जानने व पहचानने के लिए तप्पये हेसार महत्वपूर्ण मापदंड है दूसरे शब्दों में विभिन्न कालों में ईरानी सभ्यता को जानने के लिए विश्व के अध्ययनकर्ताओं और पुरातत्व वेत्ताओं के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। “तप्पये हेसार” की विभिन्न चरणों में की जाने वाली खुदाई के दौरान पुरातन विशेषज्ञों को विभिन्न कालों के लोगों की जीवन शैली का पता चला और दूसरे महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं। यह इस बात के सूचक हैं कि इस क्षेत्र में चार हज़ार ६०० वर्ष पहले से लेकर साढे ६ हज़ार वर्ष पहले, लोग इस क्षेत्र में जीवन यापन करते थे।
चार हज़ार ३०० वर्ष पहले के काल को “तप्पये हेसार” की सबसे विकसित सभ्यता का काल समझा जा सकता है। यहां की खुदाई में जो चीज़ें प्राप्त हुई हैं वे उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों की जीवन शैली की सूचक हैं। उस काल की वास्तुकला में अधिकांशतः छोटे छोटे कमरे होते थे जो सीढ़ियों के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े होते थे। उस समय के लोग बहुत ही सादे ढंग से रहते थे। वहां के लोग मुख्य रूप से तीन प्रकार की आर्थिक गतिविधियां करते थे कुछ व्यापार करते थे, कुछ पशुपालन करते थे जबकि कुछ कृषि करते थे। इस क्षेत्र में पत्थर पर खुदाई करके बनी सैकड़ों मुहरें प्राप्त हुई हैं जो इस बात की सूचक हैं कि तप्पये हेसार के लोग ईरान के दक्षिण पूर्वी या पाकिस्तान की सिंध घाटी के लोगों के साथ व्यापार करते थे। उस समय अफगानिस्तान के बदख्शान और जलालाबाद नगर से नीले रंग के और दूसरे मूल्यवान पत्थरों का आयात किया जाता था तथा दामग़ान के रोचक व अच्छे पत्थरों को निकालकर उनका निर्यात किया जाता था।
इस क्षेत्र में सीसे के छोटे छोटे टुकडों और धातु पिघलाने की भट्ठियों का होना इस बात का सूचक है कि उस काल में दामग़ान से धातु का निर्यात होता था। उल्लेखनीय है कि “तप्पये हेसार” पूरे ईरान के उत्तर और उत्तरपूर्वी क्षेत्र में एसा एकमात्र एसा स्थान है जहां होने वाली खुदाई में लिपि मिली है। मौजूद प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि विकसित व अच्छे व्यापार और सम्पत्ति व संस्कृति से समृद्ध होने के कारण इस क्षेत्र पर अज्ञात शत्रुओं ने आक्रमण किया और खतरनाक युद्ध में नगर बर्बाद हो गया।
तप्पये हेसार में होने वाली खुदाई में जो चीज़ें प्राप्त हुई हैं वे कई शताब्दियों के दौरान ईरानी लोगों की जीवन शैली, वास्तुकला और संस्कृति का परिणाम हैं और शायद भविष्य में ईरानी सभ्यता व संस्कृति के नये आयाम सामने आयें।
दामग़ान क्षेत्र का एक प्राचीन इतिहासिक अवशेष “तारीख़ाना मस्जिद” है। इस मस्जिद का निर्माण सासानी वास्तुकला में किया गया है और विदितरूप से वह तीसरी एवं चौथी शताब्दी कमरी में आने वाले भूकंप से सुरक्षित बच गयी और उसके आंतरिक भाग में थोड़ी मरम्मत करके उसका प्रयोग किया जा रहा है। तारीखाना मस्जिद को खानये खुदा और चेहलसुतून मस्जिद के नाम से भी याद किया जाता है। यद्दपि इस मस्जिद में एसा कोई शिलालेख नहीं है जिस पर उसके निर्माण की तारीख़ अंकित हो परंतु उसकी वास्तुकला को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि उसके निर्माण का संबंध इस्लामी काल के आरंभिक वर्षों से है। इस मस्जिद का महत्व इस कारण है कि उसमें इस्लामी, अरबी और सासानी काल की वास्तुकला को मिश्रित कर दिया गया है। इस मस्जिद में एक बड़ा चौकोर प्रांगण है जिसकी लंबाई २७ मीटर और चौड़ाई २६ मीटर है और उसके किनारे किनारे कमरे और मोटे मोटे स्तंभ बने हैं।
तारीखाना की मस्जिद का निर्माण इस्लाम के आरंभिक काल की मस्जिदों की भांति हुआ है और उसके निर्माण में किसी प्रकार की ग़ैर इस्लामी वास्तुकला का प्रयोग नहीं किया गया है और वह पूरी तरह इस्लाम के उदयकाल में निर्माण की जाने वाली मस्जिदों की भांति है। इसके निर्माण में मिट्टी गारे, ईंटों और लकड़ी का प्रयोग किया गया है। इस मस्जिद के निर्माण की एक विशेषता यह है कि इसके निर्माण में बहुत ही अच्छे ढंग से मसालों और दूसरी वस्तुओं का प्रयोग किया गया है इस प्रकार से कि निर्माण में प्रयुक्त होने वाली वस्तुओं के मध्य संतुलन को ध्यान में रखा गया है। यही वह चीज़ है जो आज तक मस्जिद के बाक़ी रहने का कारण बनी है।
दामग़ान की जामेअ मस्जिद भी इस नगर की एक मूल्यवान एतिहासिक धरोहर है। यह मस्जिद इस समय दामग़ान के केन्द्र में स्थित है और इसके विभिन्न भाग हैं। इसके सबसे पुराने भाग में बरामदा, शबीस्तान अर्थात विश्राम कक्ष और मीनार है। इस मस्जिद के ऊंचे बरामदे, शबीस्तान और मीनार में प्रयुक्त टाइलों पर ध्यान देने से पुरातत्व वेत्ता इस मस्जिद का संबंध पांचवी शताब्दी के मध्य से लेकर उसके अंत का समय मानते हैं। इस मस्जिद का मीनार ३२ मीटर ऊंचा है और इसके ऊपर दो शिलालेख हैं जिन्हें ईंटों से सुसज्जित किया गया है। दामग़ान की जामेअ मस्जिद के निकट कई इमाम ज़ादों की क़ब्रें हैं जिनमें इमाम ज़ादा जाफर, इमाम ज़ादा मोहम्मद तथा शाहरुख की क़ब्रें और चेहल दुख़्तरान नामक इमारत है। इन इमामज़ादों की समाधियों पर बनी इमारतों का संबंध सलजूक़ी काल से है और उन्हें एतिहासिक अवशेष के रूप में पंजीकृत कर लिया गया है। इन इमामज़ादों की क़ब्रों पर जो इमारते हैं उनकी दीवारों पर कूफी लिपि में पवित्र कुरआन की आयतों से सुसज्जित शिलालेख हैं। इसी तरह चेहलदुख्तरान मकबरे के ऊपर बने मीनार ने यहां बनी इमारतों को विशेष सुन्दरता प्रदान कर दी है।
source : irib.ir