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इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ग़ैरों की ज़बानी।

मालकी फ़िरक़े के इमाम कहते हैं, मैं एक समय तक जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिस्सलाम) के पास जाता था और हमेशा उन्हें तीन हालतों में पाता था- या नमाज़ पढ़ रहे होते थे, या रोज़े की हालत में होते थे, या क़ुरआने मजीद की तिलावत कर रहे होते थे। मैंने उन्हे कभी बिना वुज़ू के कोई हदीस बयान करते हुए नहीं देखा। विलायत पोर्टलः शियों
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ग़ैरों की ज़बानी।

 मालकी फ़िरक़े के इमाम कहते हैं, मैं एक समय तक जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिस्सलाम) के पास जाता था और हमेशा उन्हें तीन हालतों में पाता था- या नमाज़ पढ़ रहे होते थे, या रोज़े की हालत में होते थे, या क़ुरआने मजीद की तिलावत कर रहे होते थे। मैंने उन्हे कभी बिना वुज़ू के कोई हदीस बयान करते हुए नहीं देखा।
विलायत पोर्टलः शियों के छठे इमाम का नाम, जाफ़र कुन्नियत (उपनाम), अबू अब्दुल्लाह, और लक़ब (उपाधि) सादिक़ है। आपके वालिद इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम और माँ जनाबे उम्मे फ़रवा हैं। आप 17 रबीउल् अव्वल 83 हिजरी में पैदा हुए और 114 हिजरी में इमाम बने। आपके ज़माने में बनी उमय्या के बादशाहों में हेशाम, वलीद, यज़ीद बिन वलीद, इब्राहीम इब्ने वलीद और मरवान हेमार थे। इसी तरह बनी अब्बास के बादशाहों में अब्दुल्लाह बिन मोहम्मद सफ़्फ़ाह और मंसूर दवानिक़ी थे। इन बादशाहों में इमाम पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म मंसूर ने किया है। उसके सिपाही कभी कभी आपके घर पर हमला करते थे और आपको खींचते हुए मंसूर के पास ले जाते थे। मंसूर इतना बदतमीज़ हो गया था कि एक दिन उसने आपके घर में आग लगवा दी जबकि आप घर से बाहर थे और आपके बीवी बच्चे घर के अन्दर ही थे। आख़िर कार 25 शव्वाल 148 हिजरी को मदीने मुनव्वरा में इमाम को अंगूर में ज़हेर देकर शहीद कर दिया जबकि उस समय आपकी आयु 65 साल थी। आपको मदीने में बक़ीअ के क़ब्रिस्तान में दफ़्न कर दिया गया। यहाँ हम आपके सामने इस्लामी इतिहास और इस्लामी दुनिया के बड़े-बड़े उल्मा की निगाह में इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का इल्मी मक़ाम (स्थान) बयान करना चाहते हैं। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की बड़ाई, महानता और आपका बुलंद मक़ाम आपके शियों और शिया उल्मा की नज़र में बिल्कुल साफ़ है और इस बारे में उन्हे कोई शक नहीं है। शियों की नज़र में आप इतने महान हैं कि उनका मज़हब ही आपके नाम से जाना जाता है और उसे मकतबे जाफ़री या फ़िरक़ए जाफ़रिया कहा जाता है। अगर अपने उनकी तारीफ़ में कोई बात कहें तो कहा जाएगा कि यह तो उनके अपने हैं उन्हें तो उनकी तारीफ़ करना ही है, बात तो तब है जब दूसरे भी उनकी महानता बयान करें। इमाम को जहाँ अपने महान मानते हैं वहीं दूसरे सम्प्रदाय के मानने वालों, यहाँ तक कि आपके विरोधियों ने भी आपकी महानता को स्वीकार किया है। हम उनमें से कुछ उदाहरण पेश करते हैं।
1. मंसूर दवानीक़ीः
वह इमाम की जान का जानी दुश्मन था लेकिन उनकी महानता और बुलंद मक़ाम को क़ुबूल करता था, उसका कहना हैः अल्लाह की क़सम जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिमस्सलाम) उन लोगों में से हैं जिनके बारे में क़ुरआने मजीद में आया हैः फिर हमनें इस किताब (क़ुरआने मजीद) का वारिस अपने ख़ास लोगों को बनाया। वह (इमामे सादिक़) उन लोगों में से थे जो ख़ुदा के ख़ास बन्दे थे और अच्छे काम अंजाम देने वालों में सबसे आगे थे। ( तारीख़े याक़ूबी- जि.3 पेज 17)
2. मालिक इब्ने अनसः
 मालकी फ़िरक़े के इमाम कहते हैं, मैं एक समय तक जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिस्सलाम) के पास जाता था और हमेशा उन्हें तीन हालतों में पाता था- या नमाज़ पढ़ रहे होते थे, या रोज़े की हालत में होते थे, या क़ुरआने मजीद की तिलावत कर रहे होते थे। मैंने उन्हे कभी बिना वुज़ू के कोई हदीस बयान करते हुए नहीं देखा। (इब्ने हजर अस्क़लानी, तहज़ीबुल तहज़ीब, बैरूत दारुल फ़क्र, जि.1 पेज 88) फिर वह कहते हैः इल्म, इबादत और तक़वे में इस आँख ने जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अलैहिस्सलाम) से अफ़ज़ल व श्रेष्ठ इन्सान नहीं देखा, इस कान नें उनसे ज़्यादा किसी के बारे में अच्छा नहीं सुना और इस दिल उनसे ज़्यादा किसी की महानता को क़ुबूल नहीं किया। (अल इमामुस सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 53)
3. इब्ने ख़लकानः
यह मशहूर इतिहासकार लिखता हैः वह शियों के एक इमाम, पैग़म्बर (स.) के घराने के एक अज़ीम इन्सान हैं और अपनी बात और अमल में सच्चा होने की वजह से उन्हे सादिक़ कहा जाता है। वह इतने ज़्यादा बड़ाई और अच्छाइयों के मालिक हैं कि उसे बयान करने की ज़रूरत नहीं है। (वफ़यातुल आयान, डाक्टर एहसान अब्बास, क़ुम, मंशूरात शरीफ़ुर्रज़ी, जि.1 पेज 328)
4. अब्दुर्रहमान इब्ने अबी हातिम राज़ीः
 वह कहते हैं कि मेरे पिता हमेशा कहा करते थे, जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) इतने क़ाबिले ऐतबार व विश्वसनीय इन्सान हैं कि वह जो भी कहते हैं उस बारे में कोई सवाल नहीं किया जा सकता, यानी वह जो भी कहते हैं या बयान करते हैं वह सही होता है। (अल जरह वत तादील, जि.2, पेज 487)
5. अबू हातिम मोहम्मद इब्ने हय्यानः
वह कहते हैः अहलेबैत (अ.) में जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) फ़िक़्ह, इल्म और फ़ज़ीलत में बहुत अज़ीम इन्सान थे। (आलामुल हिदायः, जि. 1 पेज 22)
6. अबू अब्दुर्रहमान असलमी कहते हैंः
 जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) अपने परिवार वालों में सबसे अफ़ज़ल व श्रेष्ठ थे, उनके पास बहुत ज़्यादा इल्म था, एक ज़ाहिद (सन्यासी) इन्सान थे, इच्छाओं से बिल्कुल दूर और हिकमत (ज्ञान एंव नीत) में संपूर्ण अदब के मालिक थे। (अल इमामुस् सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 58)٫
7. मोहम्मद इब्ने तलहा शाफ़ेईः
उन्होंने इमाम जाफ़र सादिक़ अ. की महानता और उनके मरतबे के बारे में बहुत ख़ूबसूरत बात कही है, वह कहते हैः जाफ़र इब्ने मोहम्मद (अ.) अहलेबैत के बुज़ुर्गों और उनके सरदारों में से थे, बहुत ज़्यादा क़ुरआन पढ़ा करते थे, उसकी आयतों के बारे में सोचते थे और इस दरिया से क़ीमती ख़ज़ाने निकालते थे और क़ुरआने करीम के छुपे हुए राज़ों और मोजिज़ों (रहस्यों और चमत्कारों) को सबके सामने बयान करते थे। उन्होंने अपने समय को इताअत, बन्दगी (आज्ञापालन व भक्ति) और दूसरे कामों के लिये बांटा हुआ था और उसका हिसाबो किताब भी करते थे। उन्हे देख कर इन्सान को क़यामत की याद आती थी और उनकी बातें सुन कर इन्सान का दुनिया से मुँह मोड़ने का दिल चाहता था। जो उनके बताये रास्ते का अनुसरण करेगा उसके लिये जन्नत है। उनकी पेशानी में एक ऐसा नूर था जिससे मालूम होता था कि वह नुबूव्वत के पाक ख़ानदान से हैं और उनके नेक अमल से इस बात का अंदाज़ा होता था कि वह रिसालत की नस्ल से हैं। इस्लामी मज़हबों के इमामों और बुज़ुर्गों के एक गुट ने उनसे हदीसें नक़्ल की हैं और उनकी शागिर्दी की है और वह सब इस शागिर्दी पर गर्व करते थे और उसे अपने लिये एक फ़ज़ीलत और शरफ़ (सम्मान) समझते थे। उनके चमत्कार और उनकी विशेषताएं इतनी ज़्यादा हैं कि इन्सान उन्हे गिन नहीं सकता और इन्सान की अक़्ल उन तक पहुँच नहीं सकती। (अल इमामुस् सादिक़ वल मज़ाहिबुल अरबआ, हैदर असद, बैरूत, दारुल कुतुबुल अरबी, जि.1 पेज 23)
8. बुख़ारीः
वह लिखते हैं, पूरी उम्मत उनकी बुज़ुर्गी और सरदारी पर सहमत है। (आलामुल हिदाया, जि.1, पेज 24- यनाबीउल मवद्दा क़न्दौज़ी, जि. 3, पेज 160)


source : wilayat.in
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