लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: शरहे दुआ ए कुमैल
इब्ने कसीर दमिशक़ी कहता हैः
کَانَ شُجَاعاً فَاتِکاً وَ زَاھِداً عَابِداً
काना शुजाअन फ़ातेकन वज़ाहेदन आबेदन[1]
कुमैल बहादुर, साहसी, भक्त तथा तपस्वी व्यक्ति था।
इब्ने असीर कहता हैः
کَانَ رَجُلاً رَکِیناً ۔۔۔ وَ کَانَ خَصِیصاً بِأَمِیرِ ألمُؤمِنِینَ
काना रजोलन रकीनन ...[2] वकाना ख़सीसन बेअमीरिल मोमेनीन[3]
कुमैल गरिमा से परिपूर्ण व्यक्ति .... और अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) का विशिष्ट साथी था।
अत्तबक़ात नामी पुस्तक के लेखक इब्ने सअद तथा मुहम्मद पुत्र जूरैरे तबरि तारीख़ मे लिखते हैः
کَانَ شَرِیفاً مُطَاعاً فِی قَومِہِ
काना शरीफ़न मुताअन फ़ि क़ौमेहि[4]
कुमैल अपनी जाति के बीच सज्जन आज्ञाकारी व्यक्ति था।
इब्ने हज्र असक़लानी शाफ़ेई अलइसाबा नामी पुस्तक मे कहते हैः
کَانَ شَرِیفاً مُطَاعاً ، ثِقَۃ، قَلِیلُ الحَدِیث
काना शरीफ़न मुताअन, सिक़तन, क़लीलुल हदीस[5]
कुमैल सज्जन आज्ञाकारि, विश्वासनीय व्यक्ति था, बहुत कम हदीसे उद्धरण की है।
अलग़ारात नामी पुस्तक के लेखक ने कुच्छ रिवायात से यह उद्धरण किया है कि कुमैल विश्वासनीय , शियो के सरदार तथा कूफ़ा शहर के तपस्वी व्यक्तियो मे से था।[6]
रहस्यवादीयो, सैर व सलुक के मालिको तथा अपने महबूब से मिलने की इच्छा करने वालो ने कुमैल को अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) का रहस्यवादी तथा मौलाए मुवाहेदीन के आध्यात्मिक शिक्षाओ के ख़ज़ाने के रूप मे पहचानते है।[7]
कुमैल पुत्र ज़ियाद के अंको मे से आदरणीय अमीरुल मोमेनीन अली (अ.स.) की प्रसिद्ध एंव अनमोल बाते जो कुमैल से कही है उनमे से कुच्छ निम्न लिखित है।
[1] अलबिदाया वन्निहाया, भाग 9, पेज 47
[2] अलकामिल फ़ित्तारीख़, भाग 4, पेज 472
[3] अलकामिल फ़ित्तारीख़, भाग 4, पेज 482
[4] अत्तबक़ातुल कुबरा (इब्ने सअद), भाग 6, पेज 217; तारीख़े तबरि, भाग 11, पेज 664
[5] अलइसाबा, भाग 5, पेज 486
[6] अलग़ारात (अनुवाद), पेज 539
[7] कुमैल के चरित्र के विस्तार हेतु निम्न लिखित पुस्तको की ओर संकेत किया गया है।
अत्तबक़ातुल कुबरा (इब्ने सअद), भाग 9, पेज 123; अलएल्ल वमअरेफ़तुर्रिजाल, भाग 1, नम्बर 717; अत्तारीख़ुल कबीर, भाग 7, पेज 297, नम्बर 986; तारीख़ुस्सिक़त लिलअजलि, पेज 398, नम्बर 1420 व 1421; अलमरासील लेअबि दाऊद, पेज 42; अलजर्ह वत्तादील, भाग 7, पेज 167, नम्बर 946; अस्सेक़ात लेइब्ने जुब्बान, भाग 3, पेज 337; तहज़ीबुल कमाल, भाग 3, पेज 1149; अलकाशिफ़, भाग 3, पेज 9, नम्बर 4740; तहज़ीबुत्तहज़ीब, भाग 8, पेज 445, नम्बर 809; तक़रीबुत्तहज़ीब, भाग 2, पेज 136, नम्बर 65; ख़ुलासतुत्तहजीबुत्तहज़ीब, पेज 322