पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
अशीष का सही स्थान पर खर्च करना भाग 2 मे कहा था कि यदि ईश्वर की आज्ञा का पालन करोगे, तो ईश्वर तुम्हे अच्छा इनाम प्रदान करेगा इस लेख मे यह बताया जायेगा कि मानव का अशीष को सही स्थान पर खर्च करने का दायित्व किस समय तक है।
हा, यदि हृदय की अशीष का व्यय विश्वास (इमान) मे, बुद्धि की अशीष का व्यय हक़ीक़तो के विचार करने मे, तथा अंगो की अशीष का व्यय अच्छे कर्मो मे, स्थान (मक़ाम, पोस्ट), धन एवं सम्पत्ति का व्यय ईश्वर के भक्तो (दासो) की कठिनाईयो को हल करने मे व्यय हो, संक्षिप्त रुप मे यह कहा जाए कि पूजा पाठ, आज्ञाकारिता, प्राणियो की सेवा करने उनपर एहसान तथा उनके संघ भलाई करने, वर्च्यू (तक़वा) एवं सतीत्व (इफ़्फ़त) के मार्ग मे अशीषो से सहायता ली जाए, तो मानव दुनिया मे सफ़लता एवं अच्छाई के अतिरिक्त, आख़ेरत मे (दुनिया की समाप्ति के पश्चात) पाँच प्रकार के इनाम प्राप्त करेगा, और यह कि अशीषो का सही कार्यक्रम मे लागू करना दुर्भर कार्य नही है बलकि यह एक ऐसा तत्थ है जिसका लागू करना प्रत्येक स्त्रि एवं परूष का उस समय तक दायित्व है जब तक कि मनुष्य और ईश्वर की बीच सारे पर्दे न हट जाए और मानव ईश्वर से निकटता तथा मिलने के स्वाद का आनंद प्राप्त न कर ले।
जारी