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चिकित्सक 11

चिकित्सक 11

 

पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन

लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान

 

 قَالَ عَلِىُّ بْنُ الحُسينِ (عليه السلام): اِنَّ المَعْرِفَةَ وَكَمالَ دِينِ المُسْلِمِ تَرْكُهُ الكَلامَ فِيمَا لاَ يُعْنِيهِ ، وَقِلَّةُ مِرائِهِ وَحِلْمُهُ وَصَبْرُهُ وَحُسْنُ خُلْقِهِ

 

क़ाला अलीयुब्नुल हुसैने (अलैहिस्सलाम) इन्नल मारेफ़ते वकमाला दीनिलमुस्लेमे तरकहुल कलामा फ़ीमा लायोनीरहे, वाक़िल्लतो मिराऐहि वहिलमोहु वसबरोहु वहुसनो ख़लक़ेहि[1]

हुसैन पुत्र अली (अलैहिस्सलाम) ने कहाः निसंदेह मारफ़त एवं मुस्लिम धर्म की पूर्णता निम्नलिखित कार्यो मे हैः व्यर्थ की बातो का त्यागना, थोड़ा विवाद एवं टकराव, सहनशीलता, आत्म नियंत्रण और अच्छी नैतिकता।

 

عَنِ البَاقِرِ (عليه السلام) : مَنْ صَدَقَ لِسَانُهُ زَكى عَمَلُهُ وَمَنْ حَسُنَتْ نِيَّتُهُ زِيدَ فِى رِزْقِهِ وَمَنْ حَسُنَ بِرُّهُ بِاَهْلِهِ زِيدَ فِى عُمْرِهِ

 

अनिल बाक़िर (अलैहिस्सलाम) मन सदक़ा लेसानोहु ज़का अमलोहु वमन हसोनत निय्यतोहु ज़ीदा फ़ी रिज़केहि वमन हसोना बिर्रोहु बेआहलेहि ज़ीदा फ़ी उमरेहि[2]

इमाम बाक़िर[3] (अलैहिस्सलाम) ने कहाः सत्य बोलने वाले व्यक्ति का चरित्र पवित्र होता है, अच्छे इरादे वाले व्यक्ति की आजीविका मे वृद्धि होती है, अपने परिवार के साथ भलाई करने वाले व्यक्ति की आयु लंबी होती है।

 

عَن اَبِى عَبْدِالله (عليه السلام) : اَوْرَعُ النَّاسِ مَن وَقَفَ عِنْدَ الشُّبْهَةِ ، اَعْبَدُ النَّاسِ مَن اَقَامَ الفَرَائِضَ ، اَزْهَدُ النَّاسِ مَن تَرَكَ الحَرَامَ ، اَشَدُّ النَّاسِ اجْتِهاداً مَنْ تَرَكَ الذُّنُوبَ

 

अन अबिअब्दिल्लाह (अलैहिस्सलाम) औरउन्नासे मन वक़फ़ा एनदश्शुबहते, आबदुन्नासे मन अक़ामल फ़राएज़ा, अज़हदुन्नासे मन तरकलहरामा, अश्द्दुन्नासे इजतेहादन मन तरकज़्ज़ोनूबा[4]

इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) ने कहाः स्वयं को शको शुबहात से सुरक्षित रखने वाला व्यक्ति सर्वाधिक पवित्र चरित्र है, अपने दायित्वो को पूर्ण करने वाला व्यक्ति सबसे अच्छा दास, अवैध (हराम) को छोड़ने वाला व्यक्ति सर्वाधिक ज़ाहिद और पापो को त्यागने वाला सर्वाधिक प्रयास करने वाला व्यक्ति है।

 

जारी



[1] तोहफ़ुल ओक़ूल, पेज 279, बिहारुल अनवार, भाग 75, पेज 137, अध्याय 21, हदीस 3

[2] बिहारुल अनवार, भाग 75, पेज 175, अध्याय 22, हदीस 5

[3] बाक़िर शिया समप्रदाय के पाँचवे इमाम (नेता) है।

[4] ख़ेसाल, भाग 1, पेज 16, हदीस 56, तोहफ़ुल ओक़ूल, पेज 489, बिहारुल अनवार, भाग 75, पेज 192, अध्याय 23, हदीस 5

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