पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
क़ुरआन, आदम और उनकी पत्नि के इक़रार को ईश्वर के आदेश की मुख़ालेफ़त, पश्चाताप, प्रेमी ईश्वर की कृपा को जो कि एक लोकप्रिय कार्य है आदम की पश्चाताप कहता है, और सुरए बक़रा के सैतीसवे छंद मे इस पश्चाताप की स्वीकृता का एलान करता है, किन्तु इस तत्थ को ध्यान मे रखना चाहिए कि इक़रार, पश्चाताप, और ईश्वर की ओर पलटना, यह सब मूल्यवान आध्यात्मिक दीनता तथा हृदय की विनम्रता की उत्पाद है, क्योकि नैतिक विद्वानो के दृष्टि कोण से घमंड ईश्वर और उसके भक्त के बीच बडी बाधा है, विनम्रता तथा खाकसारी ईश्वर और मानव के बीच सीधा रास्ता तथा खुला हुआ दरवाज़ा है,घमंडी बने रहना बड़ा पाप है, तथा घमंड को त्यागना अनिवार्य है, विनम्रता से आभूषित होना आध्यात्मिक कार्य है, पाप का परित्याग तथा भक्ति के लिए आभूषित होना (सजना) एक अनिवार्य मुद्दा है, इस आधार पर पाप से पश्चाताप वास्तव मे दिव्य धर्मस्थल को विनम्रता दिखाना और घमंड तथा अहंकार से दूर रहना नैतिक अनिवार्य है।
जारी