पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
इसके पूर्व के लेख से इस बात का स्पष्टीकरण किया था कि शैतान आदम को प्रलोभन की स्थिति मे ले आया था ताकि उसकी आज्ञाकारिता के कारण (आदम) अपनी महिमा एवं गरिमा को खो बैठे, तथा स्वर्ग से निष्कासित कर दिया जाए, और ईश्वर की कृपा उनसे समाप्त हो जाए। तथा इस लेख मे इस बात को स्पष्ट किया गया है कि शैतान ने किन शब्दो के साथ आदम और हव्वा को उस वृक्ष से फल खाने पर आकर्षित किया।
शैतान ने इन शब्दो के साथ उन दोनो (आदम और हव्वा) को उस वृक्ष से फ़ल खाने के लिए आकर्षित किया।
हे आदम और हव्वा! ईश्वर ने तुम्हे इस वृक्ष के फ़ल खाने से नही रोका है, परन्तु यदि तुमने इस वृक्ष के फल को खाया तो तुम स्वर्गदूत हो जाओगे, अथवा इस हरे भरे बगीचे (उघान) मे सदैव रहेगो।
अपने द्वारा आदम और हव्वा के हृदय मे डाले गये प्रलोभन को मज़बूत करने के लिए शैतान ने सौगंध खाई कि मै तुम्हारी भलाई के अतिरिक्त कुच्छ नही चाहता[1]। शैतान की सौगंध तथा उसके आकर्षित प्रलोभन ने उन दोनो (आदम और हव्वा) के लालच को ज्वलंत बना दिया। लालच उनके और परमेश्वर के आदेश के बीच मे रूकावट बना। शैतान के प्रलोभन से उन्होने धोखा खाया तथा घमंड़ी हुए, और अंधकार मे भगवान की आज्ञा का उल्लंघन किया, तथा परमेश्वर की आज्ञा का पालन ना करने का साहस किया, झूठ उनकी निगाहो मे सुंदर बनकर आया।
जारी
[1] فَوَسْوَسَ لَهُمَا الشَّيْطَانُ لِيُبْدِىَ لَهُمَا مَا وُرِيَ عَنْهُمَا مِن سَوْءَاتِهِمَا وَقَالَ مَا نَهَاكُمَا رَبُّكُمَا عَنْ هذِهِ الشَّجَرَةِ إِلاَّ أَن تَكُونَا مَلَكَيْنِ أَوْ تَكُونَا مِنَ الخَالِدِينَ * وَقَاسَمَهُمَا إِنِّي لَكُمَا لَمِنَ النَّاصِحِينَ
सुरए आराफ़ 7, छंद 20-21 (फ़वसवसा लहोमश्शैतानो लेयुबदेयालहोमा मावोरेआ अनहोमा मिन सौआतेहेमा वाक़ाला मा नहाकुमा रब्बोकोमा अन हाज़ेहिश्शजारते इल्ला अन तकूना मलाकैने ओ तकूना मिनल ख़ालेदीना * वा क़ासमाहोमा इन्नी लकोमा लामेनन्नासेहीना)