पुस्तक का नामः पश्चाताप दया का आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
आप ने इसके पूर्व तीन लेखो मे पापो के बुरे प्रभाव का अध्ययन हज़रत इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम के विस्तृत कथन मे किया। इस नए लेख मे आप पाप से समबंधित बात जो कि अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा मे कही है उसका अध्ययन करेंगे।
ईश्वरीय दया से वंचित करने वाले पापः न्यायधीश का ग़लत फ़ैसला करना, झूठी गवाही देना, गवाही का छिपाना, ज़कात एंव ऋण का भुगतान न करना, फ़क़ीरो एंव ज़रूरतमंदो के प्रति कठोर होना, अनाथ तथा ज़रूरतमंदो पर अत्याचार करना, सवाल करने वाले को अपमानित करना, रात्री के अंधेरे मे किसी तोहिदस एंव नादार व्यक्ति को ख़ाली हाथ लौटाना।[1]
हज़रत अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम पापो के समबंध मे कहते हाः
لَو لَمْ يَتَوَعَّدِ اللهُ عَلى مَعْصِيَتِهِ لَكَانَ يَجِبُ اَنْ لاَ يُعْصى شُكْراً لِنِعَمِهِ
लो लम यतवाअदल्लाहो अला मासीयतेहि लकाना यजेबो अल्ला योसा शुकरन लेनेआमेहि[2]
यदि ईश्वर ने अपने सेवको (वंदो) को अपनी आज्ञा के विरूध दंड का वचन न दिया होता, तब भी उसकी नियामत के शुक्र करने हेतु अनिवार्य था कि उसकी अवज्ञा (ना फ़रमानी, मासीयत) नही की जाए।
प्रिय पाठकोः ईश्वर की अनगिनत निमतो के शुक्र के आधार पर हमे चाहिए कि हम हर प्रकार की अवज्ञा तथा पाप से बचे और अपने अतीत को परिवर्तित करने के लिए ईश्वर से अपने पापो की क्षमा मांगे तथा पश्चाताप करे क्योकि पश्चाताप के आधार पर ईश्वर की दया एंव क्षमा तथा उसकी कृपा मानव के शामिले हाल होता है।