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क़ुरआन तथा पश्चाताप जैसी महान समस्या 2

क़ुरआन तथा पश्चाताप जैसी महान समस्या 2

पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलिंग्न

लेखकः आयतुल्ला अनसारियान

 

इसके पहले लेख मे हमने पश्चाताप का आदेश के अंत मे क़ुरआन के 2 छंद प्रस्तुत किए थे इस लेख मे इरान के प्रसिद्ध शहर इसफ़हान के लेखक राग़िबे इसफ़हानी के विचारो का अध्ययन करेंगे।

राग़िब इसफ़हानी अपनी मुफ़रेदात नामी पुस्तक मे लिखते हैः प्रलय की सफ़लता एंव भलाई यह है कि जहा मनुष्य के लिए ऐसा जीवन होगा जहाँ मृत्यु नही होगी, ऐसा सम्मान होगा जहां अपमान नाम की कोई वस्तु नही होगी, तथा ऐसा ज्ञान होगा जहां अज्ञानता का कोई पता नही होगा, वहा पर मानव ऐसा धनि होगा जहा उसका हाथ तंग नही होगा।[1]

 

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا تُوبُوا إِلَى اللَّهِ تَوْبَةً نَصُوحاً 

 

या अय्योहल्लज़ीना आमानू तूबू एलल्लाहे तौबतन नसूहा ...[2]

हे आस्था रखने वालो (इमान वालो)! पवित्र हृदय के साथ पश्चाताप करो ...

ईश्वर ने इन छंदो मे आस्था रखने वालो एंव नास्तिको सभी को पश्चाताप करने की संदेश दिया है, ईश्वर की आज्ञाकारिता अनिवार्य तथा दया और क्षमा का कारण है, इसी प्रकार उसकी समझसयत (मासियत) हराम तथा उसके क्रोधित होने का कारण है, जिसके कारण लोक एंव प्रलोक मे अपमान तथा सदैव के लिए मौत एंव विपत्ति है।



[1] मुफ़रेदाते राग़िब, पेज 64

[2] सुरए तहरीम 66, छंद 8

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