पुस्तकः पश्चाताप दया की आलिंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
4- पश्चाताप से मुह मोड़ना
दोषी व्यक्ति यदि ईश्वर की दया से निराश होकर पाप से पश्चाताप न करे तो उसे ध्यान मे रखना चाहिए कि ईश्वर की दया से निराशा सिर्फ नास्तिको से विशिष्ट है।[1]
दोषी व्यक्ती यदि इस कारण पश्चाताप नही करता कि ईश्वर उसके पापो को क्षमा करने की शक्ति नही रखता, तो उसे ध्यान देना चाहिए कि यह कल्पना भी यहूदियो की है।[2]
दोषी व्यक्ति की हेकड़ी यदि दयालु ईश्वर के समक्ष जुरअत तथा कृपालु प्रभु के समक्ष अपमान के आधार पर हो तो उसे ध्यान देना चाहिए कि ईश्वर इस प्रकार के घमंडी, अहंकारी और असभ्य व्यक्तियो को पसंद नही करता, तथा जिस व्यक्ति से ईश्वर प्रेम ना करता हो तो लोक एंव प्रलोक मे उसकी उद्धार संभव नही है।[3]
दोषी, पापी को यह बात ध्यान मे रखना चाहिए कि पश्चाताप से मुंह मोड़ना, जबकि पश्चाताप का द्वार खुला हुआ है और अनिवार्य शर्तो के साथ पश्चाताप संभव है तथा ईश्वर पश्चाताप को स्वीकार करने वाला है, इसी लिए इन सभी बातो के दृष्टिगत पश्चाताप ना करना स्वयं और आसमानी हक़ीक़तो पर अत्याचार करना है।
. . . وَمَن لَمْ يَتُبْ فَأُولئِكَ هُمُ الظَّالِمُونَ
... वमन लम लतुब फ़ाऊलाऐका हुमुज़्ज़ालेमून[4]
यदि कोई पश्चाताप ना करे तो समझो कि वास्तव मे येही व्यक्ति अत्याचारी है।
إِنَّ الَّذِينَ فَتَنُوا المُؤْمِنِينَ وَالمُؤْمِنَاتِ ثُمَّ لَمْ يَتُوبُوا فَلَهُمْ عَذَابُ جَهَنَّمَ وَلَهُمْ عَذَابُ الْحَرِيقِ
इन्नल्लज़ीना फ़तनूलमोमेनीना वल मोमेनाते सुम्मा लम यतूबू फ़लहुम अज़ाबो जहन्नमा वलाहुम अज़ाबुल हरीक़[5]
बेशक जिन लोगो ने इमानदार पुरुषो और महिलाओ को सताया तथा तत्पश्चात पश्चाताप नही किया, उनके लिए नरक की यातना है और उनके लिए जलाने वाली यातना भी है।
[1] सुरए युसुफ़ 12, छंद 87
[2] सुरए माएदा 5, छंद 64
[3] لاَ جَرَمَ أَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ مَا يُسِرُّونَ وَمَا يُعْلِنُونَ إِنَّهُ لاَ يُحِبُّ الْمُسْتَكْبِرِينَ; إِنَّ اللَّهَ يُدَافِعُ عَنِ الَّذِينَ آمَنُوا إِنَّ اللَّهَ لاَ يُحِبُّ كُلَّ خَوَّان كَفُور ; إِنَّ قَارُونَ كَانَ مِن قَوْمِ مُوسَى فَبَغَى عَلَيْهِمْ وَآتَيْنَاهُ مِنَ الْكُنُوزِ مَا إِنَّ مَفَاتِحَهُ لَتَنُوأُ بِالْعُصْبَةِ أُوْلِى الْقُوَّةِ إِذْ قَالَ لَهُ قَوْمُهُ لاَ تَفْرَحْ إِنَّ اللَّهَ لاَ يُحِبُّ الْفَرِحِينَ ; وَلاَ تُصَعِّرْ خَدَّكَ لِلنَّاسِ وَلاَ تَمْشِ في الاْرْضِ مَرَحاً إِنَّ اللَّهَ لاَ يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَال فَخُور ; لِكَيْلاَ تَأْسَوْا عَلَى مَا فَاتَكُمْ وَلاَ تَفْرَحُوا بِمَا آتَاكُمْ وَاللَّهُ لاَ يُحِبُّ كُلَّ مُخْتَال فَخُور
सुरए नहल 16, छंद 23 (ला जरमा अन्नल्लाहा यालमो मा योसिर्रूना वमा योलेनूना इन्नहू ला योहिब्बुल मुसतकबेरीना); सुरए हज 22, छंद 38 (इन्नल्लाहा योदाफ़ेओ अनिल्लज़ीना आमनू इन्नल्लाहा ला योहिब्बो कुल्ला ख़व्वानिन कफ़ूरिन); सुरए क़ेसस 28, छंद 76 (इन्ना क़ारूना काना मिन क़ौमे मूसा फ़बग़ा अलैहिम वा आतैनाहो मिनल कोनूज़े मा इन्ना मफ़ातेहाहू लतानूओ बिलउसबते ऊलिल क़ुव्वते इज़ क़ाला लहू क़ौमोहू ला तफ़रहो इन्नल्लाहा ला योहिब्बुल फ़रेहीना); सुरए लुक़मान 31, छंद 18 (वला तोसग़्ग़िर ख़द्दका लिन्नासे वला तमशे फ़िलअर्ज़े मरहन इन्नल्लाहा ला योहिब्बो कुल्ला मुखतालिन फ़ख़ूर) ; सुरए हदीद 57, छंद 23 (लेकैला तासौ अला मा फ़ा तकुम वला तफ़रहू बेमा आताकुम वल्लाहो ला योहिब्बो कुल्ला मुखतालिन फ़ख़ूर);
[4] सुरए हुज्रात 49, छंद 11
[5] सुरए बोरूज 85, छंद 10