पुस्तकः पश्चाताप दया की आलिंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
हज़रत रसूले अकरम सललल्लाहो अलैहे वाआलेहि वसल्लम से रिवायत है किः
اَلتَّوْبَةُ تَجُبُّ مَا قَبْلَهَا
“अत्तोबतो तजुब्बो मा क़बलहा”[1]
पश्चाताप मनुष्य के पिछले कर्मो के समाप्त कर देती है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते है किः
اَلتَّوْبَةُ تَسْتَنْزِلُ الرَّحْمَةَ
“अत्तौबतो तसतंज़ेलुर्रहमता”[2]
पश्चाताप के माध्यम से ईश्वर की कृपा नाज़िल होती है।
एक दूसरे कथन मे हज़रत अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम कहते हैः कि
تُوبُوا اِلَى اللهِ وَادْخُلُوا فِى مَحَبَّتِهِ ، فَاِنَّ اللهَ يُحِبُّ التَّوّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ ، وَالْمُؤْمِنُ تَوّابٌ
“तूबू एलल्लाहे वदख़ोलू फ़ी महब्बतेहि, फ़इन्नल्लाहा योहिब्बुत तव्वाबीना वायोहिब्बुल मुतातह्हेरीना, वलमोमेनो तव्वाबुन”[3]
ईश्वर की ओर लौट आओ, अपने हृदयो मे उसके प्रति प्रेम पैदा कर लो, निसंदेह भगवान पश्चाताप करने वालो तथा पवित्र लोगो को पसंद करता है और आस्तिक (मोमिन, विश्वासी) अत्यधिक पश्चाताप करता है।
जारी
[1] अवालियुल्लयाली, भाग 1, पेज 237, नवा पाठ, हदीस 150; मुसतदरेकुल वसाइल, भाग 12, पेज 129, अध्याय 86, हदीस 13706; मीज़ानुल हिक्मा, भाग 2, पेज 636, अत्तोबा, हदीस 2111
[2] ग़ेररल हेकम, पेज 195, पश्चाताप के प्रभाव, हदीस 3835 ; मुसतदरेकुल वसाइल, भाग 12, पेज 129, अध्याय 86, हदीस 13707 ; मीज़ानुल हिक्मा, भाग 2, अत्तौबा, हदीस 2112
[3] ख़ेसाल, भाग 2, पेज 623, हदीस 10; बिहारुल अनवार, भाग 6, पेज 21, अध्याय 20, हदीस 14