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हदीसो के उजाले मे पश्चाताप 6

पुस्तकः पश्चाताप दया की आलिंग्न

लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान

 

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत है किः

 

اِنَّ تَوْبَةَ النَّصُوحِ هُوَ اَنْ يَتُوبَ الرَّجُلُ مِنْ ذَنْب وَيَنْوِىَ اَنْ لاَ يَعُودَ اِلَيْهِ اَبَداً

 

इन्ना तौबतन्नसूहे होवा अय्यतूबर्रजोले मिन ज़म्बिन वयनवेया अन लायऊदा इलैहे अबादा[1]

पूर्ण पश्चाताप यह है कि मनुष्य अपने पापो से पश्चाताप करे तथा दूबारा पाप ना करने का दृढ़ निश्चय रखे।

ईश्वरी दूत हजरत मुहम्मद सललल्लाहो अलैहे वाआलेहि वसल्लम का कथन हैः कि

 

للهِ اَفْرَحُ بِتَوْبَةِ عَبْدِهِ مِنَ الْعَقِيمِ الْوَالِدِ ، وَمِنَ الضّالِّ الْوَاجِدِ ، وَمِنَ الظَّمْآنِ الْوارِدِ

 

लिल्लाहे अफ़रहो बेतौबते अब्देहि मिनल अक़ीमिल वालेदे, वमिनज़्ज़ाल्लिल वाजेदे, वमिनज़्जमआनिल वारेदे[2]

ईश्वर अपने पापी सेवक की पश्चाताप पर उस से कहीं अधिक प्रसन्न होता है जितनी एक बांझ महिला बच्चे के जन्म पर प्रसन्न होती है, अथवा किसी का कोई गुमशुदा मिल जाता है और प्यासे को बहता हुआ झरना मिल जाता है।

जारी



[1] मआनियुल अख़बार, पेज 174, तौबतुन्नुसूह के अर्थ का अध्याय, हदीस 3; वसाएलुश्शिआ, भाग 16, पेज 77, अध्याय, 87, हदीस 21027 ; बिहारुल अनवार, भाग 6, पेज 22, अध्याय 20, हदीस 23

[2] कन्ज़ुल उम्माल, पेज 10165; मिज़ानुल हिक्मा, भाग 2, पेज 636, अत्तौबा, हदीस 2123

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