पुस्तकः पश्चाताप दया की आलिंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
जबकि उसको इस बात का ज्ञान था कि इमान लाने के कारण उसकी सारी ख़ुशिया, स्थान छिन सकता है तथा उसके प्राण भी जा सकते है, परन्तु उसने हक़ को स्वीकार कर लिया और वह दयालु ईश्वर पर इमान ले आई, और उसने अपने अतीत से पश्चाताप कर लिया और नेक कर्मो द्वारा अपने परलोक को सुधारने की चिंता मे लग गई।
पश्चाताप करना उसका कोई सरल कार्य नही था, उसके कारण उसको अपने धन व सम्पत्ति तथा अपने स्थान से हाथ धौना पड़ा, और फ़िरऔन तथा फ़िरऔनीयो की आलोचनाओ को सहन करना पड़ा, लेकिन पश्चाताप, इमान, नेक कर्म तथा निर्देशिता की ओर पदो (क़दमो) को आगे बढ़ाती रही।
जनाबे आसिया की पश्चाताप फ़िरऔन तथा उसके दरबारियो को इनवेसिव (आक्रामक) ग़ुज़री क्योकि पूरे शहर मे यह बात प्रसिद्ध हो गई कि फ़िरऔन की पत्नि तथा महारानी ने फ़िरऔन के ढंगो को ठुकराते हुए कलीमुल्लाह के धर्म का च्यन कर लिया है, समझा बुझाकर, प्रेरणा दिलाकर और डरा धमकाकर भी आसिया के बढ़ते क़दमो को रोका नही जा सकता था, वह अपने हृदय की आँखो से हक़ को देखकर स्वीकार कर चुकी थी, उसने बातिल के खोखलेपन को भी भलीभाती समझ लिया था, इसीलिए सत्य और वास्तविकता तक पहुचने के उपरांत उसको हाथो से नही खो सकती था और खोखले बातिल की ओर नही लौट सकती थी।
जारी