पुस्तकः पश्चाताप दया की आलिंग्न
लेखकः आयतुल्ला अनसारीयान
जी हाँ, यह कैसे सम्भव है कि ईश्वर को फ़िरऔन से, सत्य को झूठ से, प्रकाश को अंधकार से, सही को ग़लत से, परलोक को लोक से, स्वर्ग को नर्क से तथा शालीनता (सआदत) को बदबख्ती से परिवर्तित कर ले।
आसिया ने अपने विश्वास (इमान), पश्चाताप तथा क्षमा पर दृढता दिखाई, जबकि फ़िरऔन दूबारा बातिल की ओर लौटाने का प्रयास कर रहा था।
फ़िरऔन ने आसिया से निपटने का मन बना लिया, क्रोधित हुआ, उसके क्रोध की आग भड़क उठी, परन्तु आसिया के दृढ़ निश्चय के सामने पराजित हुआ, उसने आसिया को शारीरिक यातना पहुचाने का आदेश दिया, इस महान स्त्री के हाथ एंव पैरो को बांध दिया, कठोर से कठोर सज़ा देने के पश्चात फांसी का आदेश पारित कर दिया, उसने अपने जल्लादो को आदेश दिया कि उसके ऊपर बड़े बड़े पत्थर गिराए जाए, परन्तु जनाबे आसिया ने लोक एंव परलोक की शालीनता एंव ख़ुशी प्राप्त करने हेतु धैर्य रखा, तथा इन कठोर हालात मे ईश्वर से विनति करती रही।
जनाबे आसिया की वास्तविक पश्चाताप, विश्वास (इमान), धैर्य एंव दृढ़निश्चय के कारण पवित्र क़ुरआन ने उनको प्रलय तक विश्वासी पुरूषो एंव महिलाऔ हेतु उदाहरण के रूप मे परिभाषित कराया है, ताकि हर समय के पापीयो एंव दोषियो के लिए बहाने की कोई समभावना शेष ना रह जाए तथा कोई यह ना कह दे कि पश्चाताप, विश्वास तथा नेक कार्य का कोई मार्ग शेष नही रहा था।
जारी