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Thursday 5th of December 2024
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अबू बसीर का पड़ौसी 3

अबू बसीर का पड़ौसी 3

पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न

लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान

 

इस के पूर्व के दो लेखो मे अबू बसीर और उनके पड़ौसी से समबंधित कुछ् बातो का वर्णन किया गया जिसके पहले लेख मे अबु बसीर अपने पड़ौसी से परेशान रहते है समझाने बुझाने पर भी वह कोई ध्यान नही देता बाद मे स्वयं अबू बसीर से कहता है कि इमाम सादिक से मेरे हालात बताना शायद वह ही मेरे लिए कुछ करे तथा दूसरे लेख मे इस बात का वर्णन हुआ जब अबु बसीर ने इमाम से मिलकर अपने पड़ौसी के सारे हालात इमाम को बताए तो जो संदेश इमाम ने अबु बसीर द्वारा उनके पड़ौसी को पहुचवाया और अबु बसीर ने अपनी ओर से उसमे इज़ाफ़ा किया जिसको सुनकर वह आश्चर्य चकित होकर प्रश्न करता है कि वासत्व ने क्या इमाम ने ऐसा कहा। इल लेख मे आगे के शेष हालात का अध्ययन करने को मिलेगा।

उसने उत्तर दियाः यह मेरे लिए प्रयाप्त है, कुच्छ दिनो पश्चात मुझे संदेश भिजवाया कि मै तुम से मिलना चाहता हूँ, उसके घर जाकर मैने द्वार खटखटाया, उसके शरीर पर वस्त्र नही थे परन्तु द्वार के पीछे आकर खडे हो कर कहता है अबु बसीर मेरे पास जो कुच्छ भी था मैने सब उनके मालिको तक पहुंचा दिया है। अवैध समपत्ति से पवित्र हो गया हूँ तथा मैने अपने पापो से पश्चाताप कर ली है।

मैने उसके लिए वस्त्रो का प्रतिबंध किया और कभी कभी उस से मिलने जाता रहता था, और यदि उसे कोई समस्या होती थी तो उसका भी समाधान करता था, एक दिन मुझे संदेश भिजवाया कि मै मरीज़ हो गया हूँ, मै उस से मिलने के लिए गया, कुच्छ दिनो बीमार रहा, एक दिन मरने से पहले कुच्छ मिनटो के लिए मूर्छित हो गया, जैसे ही होश आया मुसकराते हुए मुझ से कहता हैः हे अबु बसीर इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने वचन को पूरा कर दिया, और यह कहकर उसने इस दुनिया से प्रलोक की ओर प्रस्थान किया।

अबु बसीर कहते है किः मै उस वर्ष हज के लिए गया, हज के पश्चात रसूले इस्लाम की ज़ियारत (दर्शन) तथा इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से मिलने मदीना गया, जब इमाम से मिला तो मेरा एक पैर कमरे मे और दूसरा कमरे के बाहर ही था इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः हे अबु बसीर हमने तुम्हारे पड़ौसी के बारे मे दिया हुआ वचन पूरा कर दिया है।[1]  



[1] कश्फ़ुल ग़ुम्मा, भाग 2, पेज 194; बिहारुल अनवार, भाग 47, पेज 145, अध्याय 5, हदीस 199

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