पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
हक़ीर (लेखक) एक रात्री क़ुम मे फ़क़ीह बुजर्गवार, आरिफ बिल्लाह, नैतिकता के शिक्षक स्वर्गीय हाजी सैय्यद रज़ा बहाउद्दीनी की नमाज़े जमाअत मे सम्मिलित था।
नमाज़ के पश्चात श्रीमान जी से उपदेश के लिए निवेदन किया, श्रीमान जी ने उत्तर दियाः सदैव ईश्वर की ज़ात से आशा करो तथा उसी पर भरोसा रखो क्योकि उसका फ़ैज व कृपा निरंतर है किसी भी व्यक्ति को अपनी इनायत (कृपा) से वंचित नही करता, किसी भी माध्यम अथवा बहाने से अपने सेवको (बंदो) का मार्गदर्शन एंव सहायता का मार्ग उपलब्ध कर देता है।
तत्पश्चात श्रीमान ने एक आश्चर्य जनक घटना का इस पर प्रकार वर्णन कियाः उरूमिया नामक शहर मे एक व्यक्ति प्रतिवर्ष लोगो को तीर्थ यात्रा पर ले जाता था।
उस समय गाड़ियो का नया नया प्रचलन हुआ था, यह गाडिया ट्रक के समान हुआ करती थी जिन पर यात्री और सामान एक साथ ही होता था, एक कोने मे सामान रखा जाता था और वहीँ पर यात्री बैठ जाते थे।
वह क़ाफिला सालार कहता हैः उस वर्ष इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की तार्थ यात्रा पर जाने वाले लगभग 30 लोगो ने अपना पंजीकरण करा रखा था। यह तय हुआ कि अगले सप्ताह के आरम्भ मे यह क़ाफ़ला चल पड़ेगा (रवाना हो जाएगा)।
जारी