पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
मैने मंगलवार रात्रि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को स्वप्न मे देखा कि विशेष प्रेम के साथ कह रहे हैः इस यात्रा मे “इब्राहीम जेब कतरे” को भी साथ लाना मै नींद से उठा तो बहुत आश्चर्य हुआ कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम इस जेब कतरे को (जो लोगो के बीच बहुत अधिक बदनाम है) क्यो अपने दरबार मे आने का नौता दे रहे है? मैने विचारा कि यह मैरा सपना सही नही है, परन्तु दूसरी रात्रि मैने वही स्वप्न देखा, ना उससे कम और ना उससे अधिक, लेकिन उस दिन भी मैने उस सपने पर कोई ध्यान नही दिया, तीसरी रात्रि मैने स्वप्न मे इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को निराश देखा और एक विशेष रूप से मुझ से कह रहे है कि क्यो इस बारे मे कोई क़दम नही उठाते?
शुक्रवार को मै उस स्थान पर गया जहा पर फासिद और पापी लोग एकत्रित होते थे उनके बीच इब्राहीम को ढूंडा, सलाम किया और उससे पवित्र शहर मशहद की तीर्थ यात्रा पर चलने का आग्रह किया, परन्तु जैसे ही मैने उस से मशहद की तीर्थ यात्रा के लिए कहा तो उसको बहुत आश्चर्य हूआ और उसने मुझ से कहाः इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की समाधी (हरम) मुझ जैसे गंदे लोगो का स्थान नही है, वहां पर तो पवित्र और हृदय वाले लोग जाते है, मुझे इस यात्रा करने से क्षमा करे, मैने बहुत जोर दिया परन्तु वह तैयार नही हुआ, अंतः उसने क्रोधित होकर कहाः मेरे पास यात्रा व्यय के लिए पैसे भी तो नही है!! मेरे पास केवल 30 रियाल है और यह भी एक वृद्धा की जेब से निकाले हुए है यह सुनकर मैने उससे कहाः मेरे भाई! मै तुझ से यात्रा का खर्चा नही लूंगा, तुम्हारे आने जाने का सारा खर्च मेरे ऊपर है।
यह सुनकर उसने स्वीकार कर लिया तथा मशहद जाने के लिए तैयार हो गया, हमने रविवार के दिन क़ाफ़ले के जाने की घोषणा कर दी।
जारी