पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
एक वली ए खुदा के समय मे एक व्यक्ति अत्यधिक पापी था जिसने अपना पूरा जीवन इधर उधर एंव व्यर्थ की बातो मे व्यतीत किया था और प्रलय के दिन की कोई परवाह नही थी।
सज्जन एंव नेक पुरूष उस से दूर रहते थे, उसका नेक एंव सज्जन पुरूषो से कोई लेना देना नही था, अपने जीवन के अंतिम पडाव पर जब उसने अपने कार्यो का हिसाब किताब किया, तो उसे आशा की कोई किरन नही दिखाई दी, कर्मो के बाग़ मे कोई फूल की डाली नही थी, नैतिकता के बग़ीचे मे कोई कारगर पुष्प नही था, यह देखकर उसने एक ठंडी सांस ली तथा हृदय के एक कोने से आह निकल पड़ी, उसके नेत्रो से आंसूओ का झरना बहने लगा, पश्चाताप के माध्यम से ईश्वर के दरबार मे अर्जी करने लगा।
يا مَنْ لَهُ الدُّنْيا وَالآخِرَةُ اِرْحَم مَن لَيْسَ لَهُ الدُّنْيا وَالآخِرَةُ
“या मन लहुद्दुनिया वल आख़ेरतो इरहम मन लैसा लहुद्दुनिया वल आख़ेरतो”
“हे वह जो लोक एंव परलोक का मालिक है उस व्यक्ति के ऊपर दया कर जिसके पास ना लोक है और ना परलोक”।