पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
हमने इसके पूर्व लेख मे एक दुष्ट एंव शराबी व्यक्ति का उल्लेख किया था जिसने चाय के होटल पर बैठकर अपनी मखमली टोपी को पैरो मे मसल दिया मित्र के प्रश्न करने पर उत्तर दिया था कि यहा से अभी एक जवान विवाहित युवति गई है मै नही चाहता कि वह मुझे देखकर अपने पति के साथ अच्छा व्यवहार ना करे और मै एक पति एंव पत्नि के समबंधो को खराब करने का कारण बनू। इस लेख मे इस बात को उल्लेखित किया गया है कि उस दुष्ट एंव शराबी के भीतर एक क्रांति ने किस प्रकार जन्म लिया।
हमादान मे एक प्रसिद्ध ज़ाकिर आदरणीय शेख़ हुसैन भी थे जो वास्तव मे एक मुत्तक़ी तथा धार्मिक व्यक्ति थे। वह कहते हैः कि दस मोहर्रम को अस्र के समय हेसार नामी क्षेत्र मे मजलिस पढ़ने के लिए गया हुआ था लौटते समय देर हो गई शहर के द्वार पर पहुंचा तो द्वार बंद हो चुका था, मैने द्वार खटखटाया तो अली गंदाबी की आवाज़ सुनी जोकि शराब के नशे मे धुत था तथा ज़ोर ज़ोर से कह रहा थाः कौन है कौन है
मैने कहाः मै शेख हसन ज़ाकिरे इमाम हुसैन हूं, उसने द्वार खोलकर चिल्लाते हुए कहाः इस समय कहा थे मैने उत्तर दियाः हेसार महल्ले मे इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम की मजलिस पढ़ने गया था, यह सुनकर उसने कहा मेरे लिए भी मजलिस पढ़ो, मैने कहाः मजलिस के लिए मिम्बर और सुनने वालो की आवश्यकता होती है, उत्तर दियाः यहा पर सभी चीज़े उपलब्ध है, यह कहकर वह सजदा करने की स्तिथि मे चला गया और कहने लगा मेरी कमर मिम्बर है और मै सुनने वाला हूं, मेरी कमर पर बैठकर बनी हाशिम के चांद हजरत अब्बास की मुसीबत का उल्लेख करो।
भय के कारण कोई रास्ता नही था उसकी कमर पर बैठकर मजलिस पढ़ना आरम्भ किया, वह बहुत रोया, उसका रोना देख मेरी भी अजीब हालत हो गई जीवनभर ऐसी हालत नही हुई थी मजलिस समाप्त होते ही उसकी मस्ती भी समाप्त हो गई, उसके भीतर एक विचित्र प्रकार की क्रांति जन्म ले चुकी थी।
जारी