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कफ़न चोर की पश्चाताप 6

कफ़न चोर की पश्चाताप 6

पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न

लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान

 

इस लेख से पहले पाच लेखो मे कफन चोर की पूरी कहानी बताई गई अब इस लेख मे उसका अंतिम भाग आपके अध्यन हेतु तैयार है जिसमे वह जवान कहता है कि प्रभु मेरे ऊपर तेरे बहुत एहसान है पशु पक्षी उसके चारो ओर एकत्रित है और वहा पर्वत पर जाकर पैगम्बर उसको ईश्वर द्वारा क्षमा करने तथा स्वर्ग मे जाने की खुशखबरी सुनाते है।

प्रभु! पालनहार! तूने मेरे ऊपर बहुत एहसान किए है इस पापी सेवक पर तेरी नेमतो ने छाया कर रखा है, मुझे ज्ञान नही है कि मेरा अंत कैसा होगा, क्या मुझे स्वर्ग मे रखेगा अथवा नर्क मे डाल देगा?

प्रभु मेरे पाप जमीन, आसमान, अर्श एंव कुर्सी से अधिक बड़े है, मुझे ज्ञान नही कि मेरे पापो को क्षमा कर देगा अथवा प्रलय के दिन मेरा अपमान करेगा। उसकी ज़बान पर यही शब्द थे नेत्रो से आंसूओ का सेलाब जारी था, तथा अपने शीर्ष पर मिट्टी डालता जा रहा था पशु पक्षि उसके चारो ओर एकत्रित है पक्षीयो ने उसके ऊपर छाया कर रखा है तथा उसके साथ रो रहे है।

पैग़म्बर ने उसके समीप जाकर उसके हाथो को खोला, चेहरे का साफ़ किया और कहाः हे बोहलोल! तुझे नवेद मिल रहा है कि ईश्वर ने तुझे नर्क से स्वतंत्र कर दिया है, उसके पश्चात अपने असहाब से कहाः जिस प्रकार बोहलोल ने अपने अतीतो की क्षतिपूर्ति की है तुम भी इसी प्रकार अपने पापो का जुबरान करो, उसके पश्चात इन दोनो छंदो को पढ़ा तथा बोहलोल को स्वर्ग की बशारत दी।[1]



[1] अमाली शेख सदूक़, पेज 42, बैठक 11, हदीस 3; बिहारुल अनवार, भाग 6, पेज 233, अध्याय 20, हदीस 26

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