पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारियान
प्रारम्भ मे फ़ुज़ैल एक चोर था तथा अपने साथियो की सहायता से काफ़लो को रोक कर उनका धन छीन लिया करता था, परन्तु उसका एक क़ानून था कि यदि क़ाफ़ले मे कोई महिला होती थी तो उसका सामान नही लेता था, उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति के पास माल कम होता था तो उसको भी नही लेता था, और जिन व्यक्तियो से धन एंव सामान लेता था तो उनके पास थोड़ा बहुत छोड देता था, इसी प्रकार ईश्वर की अर्चना करने से भी मुंह नही मोड़ता था, नमाज एंव रोज़े से ग़ाफ़िल नही था फ़ुज़ैल की पश्चाताप के समबंध मे इस प्रकार मिलता है।
फ़ुज़ैल एक महिला का आशिक़ था परन्तु उस तक पहुँच नही थी, कभी कभी उस महिला के घर की दीवार के पास जाकर उस महिला के प्रति रोता था। एक रात्रि मे वहा से कोई क़ाफ़ला जा रहा था उस क़ाफ़ले मे एक व्यक्ति क़ुरआन पढ़ रहा था जब उसने इस छंद को पढ़ा।
أَلَمْ يَأْنِ لِلَّذِينَ آمَنُوا أَن تَخْشَعَ قُلُوبُهُمْ لِذِكْرِ اللَّهِ
“अलम याने लिललज़ीना आमनू अन तखशआ क़ोलूबोहुम लेज़िकरिल्लाहे ...”[1]
“क्या इमान वालो के लिए वह समय नही आया है कि उनके हृदय ईश्वर भक्ति और उसकी ओर से आने वाले हक़ के प्रति नम्र हो जाऐं”
फ़ुज़ैल इस छंद को सुनकर दीवार से गिर पड़े और कहाः हे पालनहार क्यो नही वह समय आ गया बल्कि उसका समय बीत चुका है, शर्मिंदा, पशेमान, हैरान एंव निराश तथा रोते हुए एक खंडहर की ओर निकल पड़ा, उस खंडहर मे क़ाफ़ला ठहरा हुआ था, जहा पर लोग एक दूसरे से कह रहे थेः चलो चलते है, सामान तैयार करो, दूसरा कहता थाः अभी चलने का समय नही हुआ है, क्योकि अभी फ़ुज़ैल मार्ग मे होगा, वह हमारा रास्ता रोक कर सारा सामान छीन लेगा, उसी समय फ़ुज़ैल ने कहाः हे क़ाफ़ले वालो! तुम लोगो के लिए खुशखबरी है कि उस खतरनाक एंव कमबख्त चोर ने पश्चाताप कर ली है!
अंतः उसने पश्चाताप की और उसके पश्चात उन लोगो को ढ़ूंडना आरम्भ किया जिनका माल छीना अथवा चोरी किया था और उनसे क्षमा मांगी।[2]
अंत मे वह कुछ समय पश्चात एक बहुत बड़ा और हक़ीक़ी आरिफ़ बन गए तथा लोगो के प्रशिक्षण मे जुट गए जिनके हिमकत वाले शब्द आज भी इतिहास मे मौजूद है।