पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
हुर ने ज़बान खोलते हुए कहाः कि मै दोराहे पर खड़ा हूँ मै स्वयं को स्वर्ग एंव नर्क के बीच पा रहा हूँ, उसके पश्चात कहाः ईश्वर की सौगंध कोई भी चीज़ स्वर्ग के मुक़ाबले मे नही है, मै स्वर्ग को हाथ से जाने नही दे सकता, चाहे मेरे टुक्ड़े टुक्ड़े कर डाले अथवा मुझे आग मे जलाकर भस्म कर दे, यह कहकर अपने अश्व पर सवार हुआ तथा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ओर चल पड़ा।
हुर को स्वर्ग एंव नर्क पर विश्वास था वह प्रलय पर विश्वास रखता था, प्रलय पर विश्वास और आस्था रखने का यह अर्थ है।
हृदय रखने वाले लोग इस बात से भलिभाती अवगत है कि एक सेकंण्ड मे मनुष्य के हृदय मे क्या क्या महल तैयार होते है, बाते करने वाले क्या क्या कहते है एक बहादुर व्यक्ति को अंतिम निर्णय लेना होता है, तथा उसी के अनुसार अमल करना होता है और इसी पर निश्चित रूप से अमल करना होता है ताकि रास्ते मे कोई रुकावट आड़े ना आए।
जनाबे इब्राहीम वह महान सैनिक थे जिन्होने अकेले शत्रु से मुक़ाबला किया है और दुश्मन के लक्ष्य को इस प्रकार असफ़ल किया कि शत्रु उनकी नियत से अवगत हो गया।
हुर ने भी अपने सामने दोनो मार्गो को स्पष्ट पाया और उनमे से एक को च्यन करने के अलावा कोई दूसरा मार्ग नही था, अपने निश्चय पर दृढ़ रहे उनके इरादो को केवल पंखो की आवश्यकता थी ताकि वह शिकारियो के तीर से बच कर निकल सकें।
जारी