पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
विद्वान (अल्लामा) कमरेई जिन की ओर से ग़रीब (लेखक) साहेबे इजाज़ा भी है अपनी पुस्तक “उनसुरे शहादत” मे कहते हैः
जिस समय बच्चो एंव परिवार के लोगो ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की गुहार सुनीः
اَلا ناصِرٌ يَنْصُرُنا . . . ؟
अला नासेरुन यनसोरोना ...?
तो ख़यामे हुसैनी से रोने और चिल्लाने की आवाज़ आने लगी, साअद और उसके भाई अबुल होतूफ़ ने जैसे ही अहले हरम के रोने की आवाज़ सुनी तो इन दोनो ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ओर रुख़ किया।
यह कुरूक्षेत्र मे थे अपने हाथो मे तलवार लिए हुए यज़ीद की सेना पर आक्रमक होकर युद्ध करने लगे, थोड़े समय तक इमाम की ओर से युद्ध करते करते कुच्छ लोगो को नर्क का रास्ता दिखाया, अंतः दोनो गंभीर रूप से घायल हो गए उसके पश्चात दोनो ने एक ही स्थान पर शहीद हो गए।[1]
इन दो भाईयो की आश्चर्यजनक घटना मे आशा की एक किरन देखने को मिलती है, आशा की किरन निराशा को मार डालती है, तथा ग़ैब के ताज़ा ताज़ा समाचार देती है, ईश्वर दूतो के लिए अचानक खुशख़बरी लेकर आती है वास्तव मे यह (आशा) ईश्वरदूतो के लिए नबी है।
जारी