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Sunday 28th of April 2024
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दस मोहर्रम के सायंकाल को दो भाईयो की पश्चाताप 6

दस मोहर्रम के सायंकाल को दो भाईयो की पश्चाताप 6

पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न

लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान

 

बुद्धि जो कि छुपी हुई है उसको  नूरे फ़िरासत और इमान (जो कि स्वयं कश्फ़ की साधारण शक्ति है) को पहले कश्फ़ करती है, उसके पश्चात नूरे नबूवत जो (मनुष्य की) सारी शक्तियो से ऊपर है रूहे रवान के स्थान को कश्फ़ करती है किन्तु रवान को कोई भी कश्फ़ नही कर सकता, वहा पर ईश्वर की विशेष किरने होती है, वहा पर केवल ईश्वर की ज़ात का समबंध होता है, ईश्वर की बड़ाई और गैब की बातो से सूचित होने के मद्देनज़र ईश्वर और उसके प्राणीयो मे कोई वासता नही है, प्रत्येक व्यक्ति अपने ईश्वर से एक विशेष समबंध रखता है और यह समबंध किसी पर भी नही खुलता, जब तक प्रचार अनिवार्य तथा उससे समबंधित आदेश है उस समय तक उसके प्रभाव हेतु आशा पाई जाती है।

धार्मिक नेताओ को प्रत्येक मोड़ पर एक नई आशा मिलती रहती है वह जनता के मार्गदर्शन के लिए अधिक प्रयास करते रहते है क्रांति एंव मार्गदर्शिता के छुपे कारणो के साथ साथ ईश्वर की पहचान के साथ उनके पास आशा और प्रतीक्षा को साहस होता है, ईश्वर की मारफ़त जितनी अधिक होगी उसी मात्रा मे ईश्वर की ज़ात से आशा उतनी ही  अधिक होगी, और जिस मात्रा मे आशा होगी उसी के अनुसार मानव ध्यानपूर्वक अध्यन करते है तथा नई ख़बरो की प्रतीक्षा मे रहते है।

 

जारी

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