पुस्तक का नामः पश्चाताप दया की आलंग्न
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
प्रारम्भ मे आप का इक़दाम, इस कुरूक्षेत्र और दस मोहर्रम के सायंकाल, कूफ़े की ओर आपक का ध्यान देना मार्ग मे घटित घटनाऐ एंव रास्ते भर आपका तज़क्कुर और याद दहानी करानाः
اَلاَمْرُ يَنْزِلُ مِنَ السَّماءِ وَكُلَّ يَوْم هُوَ فِي شَأْن ، فَاِنْ نَزَلَ الْقَضاءُ فَالْحَمْدُ للهِ ، وَاِن حَالَ الْقَضاءُ دُونَ الرَّجَاءِ . . .
अलअमरो यनज़ेलो मेनस्समाए वा कुल्लो यौमिन होवा फ़ी शानिन, फ़इन नज़ालल क़ज़ाओ फ़लहमदो लिल्लाह, वा इन हालल क़ज़ाओ दूनर्रजाए...
इन अज्ञानियो से आपकी रफतार व गुफतार, सरे पैकार शत्रुओ से प्रेम से पूर्ण वार्तालाप इन मे से प्रत्येक ऐसा मोड़ था जिस मे आशा की किरन फूट रही थी जिस से दुआए अर्फ़ा को जलवा मिलता था, जैसा कि आप कहते हैः
اِلهى اِنَّ اخْتِلاَفَ تَدبِيركَ وَسُرْعَةَ طَواءِ مَقادِيرِكَ مَنَعا عِبادَكَ العَارِفِينَ بِكَ عَنِ السُّكونِ اِلى عَطاء ، وَالْيَأْسِ مِنْكَ فِى بَلاَء
इलाही इन्नख़तिलाफ़ा तदबीरेका वा सुरअता तवाए मक़ादीरेका मनाआ ऐबादकलआरेफ़ीना बेका अनिस्सोकूने एला अताइन, वलयासे मिनका फ़ी बलाइन
और अंतिम समय मे जब आप इस दुनिया से विदा हुए तो इस आशा के साथ कि आप के साथ शहीद होने वाले साथी एंव सहायको की समाधियो से जिंदा दिल व्यक्तियो को हिदायत मिलेगी और आप के शहीदो की गली से गुजरेंगे तो नसीमे जिदगी से उनके आध्यात्मिक अस्तित्व मे क्रांति उत्पन्न हो जाएगी, इस लिए हमारा दायित्व है कि वहा से जीवन प्राप्त करके प्रचार हेतु उठ खड़े हो और ईश्वर के प्राणियो से मुह ना मोड़ बैठे।[1]