पिछले दिनों ईरान की राजधानी तेहरान में एक मस्जिद से संबंधित खबर अखबारों में प्रकाशित हुई जिसके बाद इससे संबंधित विभिन्न लोगों और संस्थाओं ने इस खबर के निराधार होने की पुष्टि और घोषणा की। यक़ीनन यह खबर सरासर गलत और निराधार है और इस्लाम दुश्मनों द्वारा फैलाई गई है ताकि इसके बहाने शिया सुन्नी के बीच मतभेद को बढ़ाया दिया जाए और इस खबर द्वारा शिया तथा ईरान की छवि को खराब किया जाए। इस खबर के आते ही कुछ लोगों ने इसी को शियों और ईरान के खिलाफ बहाना बनाकर विरोध और प्रोपगंडे शुरू कर दिए, कुछ लोगों ने इसके बहाने सुन्नी शिया के बीच मतभेदों को हवा देने की कोशिश शुरू कर दी और कुछ लोगों ने बिना जांच पड़ताल किए बयान देने और निंदा करने को अपनी मज़हबी ज़िम्मेदारी समझा। जबकि अगर गौर किया जाए तो यहां हरगिज़ कोई मस्जिद टूटी ही नही। फिर बयानों और निंदा का सिलसिला शुरू हो गया जबकि पिछले सालों में सीरिया में दर्जनों मस्जिदें वहाबियों और आईएस आतंकवादियों ने तोड़ी हैं। बहरैन, यमन जैसे कुछ अन्य देशों में भी जिनमें सऊदी अरब भी शामिल है, मस्जिदों औऱ इमामबाड़ों को ध्वस्त किया गया लेकिन इस पर किसी ने भी विरोध नहीं किया!!!! अगर मस्जिद का ध्वस्त किया जाना निंदनीय है (जो निश्चित रूप से निंदनीय है) तो हर मस्जिद के विध्वंस पर निंदा होनी चाहिए, यह केवल ईरान ही में (वह भी अफवाह पर) बयान और निंदा क्यों।!!!!!!
सच क्या है?
लेकिन सही बात क्या है? पाठकों के लिए सही बात यहां बयान की जा रही है ताकि यह विषय इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ नुकसान और अराजकता व मतभेद का कारण न बने।
सबसे पहली बात यह है कि वहाँ किसी तरह की मस्जिद नहीं तोड़ी गई है जिस मस्जिद का मामला है वह मस्जिद ही नहीं थी बल्कि तेहरान में पूनक नामक स्थान पर एक अपार्टमेंट में बैतुस सलात (नमाज़खाना) है। “मस्जिद” और होती है और “नमाज़खाना” और होता है। (दोनों के सम्मान व नियम व क़ानून में भी बहुत अंतर होता है) इसलिए यह कहना ग़लत है कि मस्जिद के साथ ऐसा हुआ।
दूसरी बात अगर कोई जगह फसाद और इस्लाम के खिलाफ साजिश का गढ़ बन जाए तो फिर उसका सम्मान बाक़ी नहीं रहता चाहे वह मस्जिद ही क्यों न हो और अगर ज़रूरी हो जाये तो वह जगह ध्वस्त कर दी जाती है। जिसका सबूत खुद पैगम्बरे इस्लाम स.अ. के ज़माने में मस्जिदे ज़ेरार का मामला है जिसका उल्लेख कुरआन के सूरा-ए-तौबा की 107-110 आयतों में किया गया है कि पैगम्बर ने अल्लाह तआला के हुक्म से इस मस्जिद को ध्वस्त करवा दिया था।
फिर सही इस्लामी व शियों के दृष्टिकोण के हिसाब से मस्जिद अल्लाह का घर और उसकी इबादत की जगह है इसलिए मस्जिद के साथ शिया या सुन्नी की कैद लगाना ही ग़लत है। जैसा कि ईरान में शिया व अहले सुन्नत हज़रात एक दूसरे की मस्जिदों में नमाज पढ़ते हैं।
और अगर यह कहा जाए कि ईरान में अहले सुन्नत की मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया तो इस समय तेहरान ही में अहले सुन्नत की 9 मस्जिदें मौजूद हैं जिसमें रोज़ाना नमाज़ और विभिन्न दिनों में दूसरे प्रोग्राम होते रहते हैं।
यह मस्जिदें निम्नलिखित हैं:
(1) सादक़िया स्क्वाएर पर स्थित सादक़िया मस्जिद। (2) दिलावरान स्ट्रीट पर स्थित तेहरान पार्स मस्जिद (3) पुराने हाईवे पर स्थित शहरे क़ुद्दस मस्जिद। (4) फ़त्ह हाईवे पर ख़लीजे फार्स नामक मस्जिद। (5) दानिश टाऊन में मस्जिदुन्नबी नामक मस्जिद। (6) मिलार्द रोड पर स्थित मस्जिदे हफ़्त जूब। (7) शहरियार में स्थित मस्जिदे वहीदिया। (8) अकबराबाद में स्तित मस्जिदे नसीमे शहर। (9) शहरियार तिराहे पर मस्जिदे रज़ियाबाद।
http://yon.ir/masjedha
ईरान में इस समय अहले सुन्नत मस्जिदों की संख्या पंद्रह हजार है जो शिया मस्जिदों से ज्यादा है। (इसलिये कि बहुत से शहरों में रौज़े या इमाम ज़ादों के मज़ार भी हैं इसलिए उन जगहों पर भी नमाज़े जमाअत होती हैं और चूंकि मस्जिद के विशेष नियम होते हैं इसलिए बहुत सी जगहों पर मस्जिद के बजाये बैतुस सलात (नमाज़खाना) बनाया जाता है। इसी तरह इस्लामी इंक़ेलाब के बाद से हर स्कूल, कॉलेज और हर दफ़्तर व संस्था में नमाज़ ख़ाने मौजूद हैं जिनमें जमाअत के साथ नमाज़ें होती हैं।)
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जैसा कि बयान किया गया कि यह मस्जिद नहीं बल्कि नमाज़ ख़ाना था, एक घर को नमाज़ ख़ाना कहा जाता था। और यह नमाज़ ख़ाना पिछले साल अदालत द्वारा बंद कर दिया गया था जिसकी वजह यह थी कि यह जगह अवैध थी और यहां पर गैर ईरानी और संदिग्ध लोगों का आना जाना था और इसे बंद किए जाने से पहले विभिन्न बार नगर पालिका की ओर से सम्बंधित लोगों का इस ओर ध्यान दिलाया जा चुका था और नोटिस भी दी जा चुकी थी।
farsnews.com/13931028001012
नोटिस और ध्यान दिलाने के बावजूद वहां अवैध गतिविधियां जारी थीं जिसके परिणाम स्वरूप अदालत की ओर से इस मकान को ध्वस्त करने का आदेश दिया गया।
उपरोक्त नमाज़ ख़ाना एक अपार्टमेंट था जो कुछ लोगों द्वारा रहने के लिए किराये पर लिया गया था जिसे बाद में नमाज़ ख़ाना बना दिया गया। और वास्तव में इन लोगों ने कट्टरपंथी और वहाबी व तकफीरी सिद्धांतों के प्रचार के लिए इस जगह को माध्यम बनाया था।
जहां तक गिराए जाने और ध्वस्त किए जाने की बात है तो पिछले कुछ वर्षों में ईरान में ऐसे कई मकान और इमारतें विभिन्न स्थानों यहां तक कि पवित्र शहर क़ुम में अदालत द्वारा बंद की गई या ध्वस्त की गई हैं (जिनका सम्बंध शियों से था लेकिन ख़ुफ़िया एजेंसियों के अनुसार वहां राष्ट्रीय और इस्लामी हितों के विपरीत गतिविधियां अंजाम पा रही थीं।) इस लिये ऐसे किसी काम में धार्मिक भेदभाव का कोई सवाल ही नहीं उठता।
shia-online.ir/article.asp?id=39048
इस विध्वंस में किसी भी तरह का ख़ास उद्देश्य छिपा नहीं था केवल कानून का उल्लंघन और इस मकान की आड़ में इंक़ेलाब और इस्लाम व मुसलमानों के खिलाफ़ गतिविधियों से रोका गया वरना पूरे ईरान व तेहरान में अहलेसुन्नत की मस्जिदों और नमाज़ ख़ानों में पूरी आज़ादी से गतिविधियां अंजाम पा रही हैं। इस जगह पर अवैध और तकफीरी गतिविधियां अंजाम पाने के कारण अदालत ने यह कानूनी कदम उठाया जो सौ फीसदी सही और हक़ है।
ईरान ही में विभिन्न कट्टरपंथी और तकफीरी गुटों ने ग़लत कदम उठाए और ज़ुल्म व बर्बरता का प्रदर्शन किया जैसे “जुंदुल्लाह” और “जैशुल अद्ल” नामक गिरोह सामने आए उन्होंने ईरान में रह कर इंक़ेलाब को नुकसान पहुंचाया और मुसलमानों का नरसंहार किया और ईरान में पाकिस्तान और इराक़ जैसे हालात बनाना चाहे। इन समूहों की ग़लत कार्यवाहियों और घिनौने अपराध के बाद तो ज़रूरी है कि विशेषकर तेहरान में ऐसे व्यक्तियों और समूहों को पनपने न दिया जाए जो इस्लाम को नुकसान पहुंचाएं और आतंकवाद फैलाते फिरें।
http://shayeaat.ir/post/345
इस्लाम दुश्मनों ने इस विषय को बहाना बनाया ताकि ईरान में अहले सुन्नत को मज़लूम दिखाएँ और ईरान की इस्लामी हुकूमत को उनके विरोधी के रूप में पेश करें जबकि जितनी आज़ादी ईरान में अहले सुन्नत हज़रात को हासिल है किसी भी गैर सुन्नी देश में इतनी आज़ादी नहीं है। जिसका एक नमूना पूरे ईरान में शियों से अधिक सुन्नियों की मस्जिदों का होना और तेहरान में नौ मस्जिदों का होना है। तमाम इस्लामी देशों के विपरीत, इस्लामी रिपब्लिक ईरान में हरगिज़ किसी तरह का धार्मिक भेदभाव नहीं है और वहाँ शियों की तरह अहले सुन्नत को भी पूरी आज़ादी हासिल है जबकि अक्सर इस्लामी देशों में शियों के साथ भेदभाव बरता जाता और गलत व अनुचित व्यवहार होता है उन देशों में शियों को धार्मिक आज़ादी हासिल नहीं है। ईरान में आले मुहम्मद स.अ. का पालन करते हुए इस्लाम का समर्थन होता है इस्लाम को पेश किया जाता है पक्षपात व भेदभाव से हरगिज़ काम नहीं लिया जाता। इसका एक नमूना यह भी है कि ईरान जिस तरह लेबनान में शियों का समर्थन करता है उसी तरह फिलिस्तीन के सुन्नियों का भी समर्थन करता है क्योंकि दोनों जगह मुसलमान हैं और मुक़ाबले में इस्लाम के दुश्मन।
source : abna