क्या वहाँ की औरत सच में आज़ाद है? क्या यूरोप की हिस्ट्री में हमेशा ऐसा रहा है?) अगर आप आज से डेढ़ दो सौ साल पहले की यूरोप की हिस्ट्री पढ़ें तो आपको अंदाज़ा होगा कि यूरोप में औरत को किसी तरह का कोई अधिकार नहीं दिया जाता था बल्कि वह हर तरह से मर्द पर निर्भर थी
विलायत पोर्टलः आज यूरोप और पश्चिमी देशों में औरत को सबसे ज़्यादा आज़ाद माना जाता है और कहा जाता है कि अगर औरत कहीं आज़ादी है तो वह केवल पश्चिम है जहाँ औरत को हर तरह का अधिकार दिया जाता है। सवाल यह है कि क्या सच में ऐसा ही है? क्या वहाँ की औरत सच में आज़ाद है? क्या यूरोप की हिस्ट्री में हमेशा ऐसा रहा है?) अगर आप आज से डेढ़ दो सौ साल पहले की यूरोप की हिस्ट्री पढ़ें तो आपको अंदाज़ा होगा कि यूरोप में औरत को किसी तरह का कोई अधिकार नहीं दिया जाता था बल्कि वह हर तरह से मर्द पर निर्भर थी, उसका सब कुछ मर्द के हाथ में था, हाँ कुछ औरतें रानी बन कर ज़रूर रही हैं और उन्होंने राज ज़रूर किया है लेकिन इस वजह से नहीं था कि उनके यहाँ औरत को बहुत सम्मान दिया जाता था बल्कि उसकी वजह यह थी कि यह जायदाद उस औरत को विरासत में मिलती थी वरना औरत होने के नाते उसे कोई ख़ास सम्मान और अधिकार नहीं दिया जाता था। आज का यूरोप यह दावा करता है कि उनके यहाँ औरत आज़ाद है लेकिन उसी यूरोप में सत्तर अस्सी साल पहले औरत को यह अधिकार नहीं दिया जाता था कि वह किसी चीज़ की मालिक बने यानी एक यूरोपियन और अमेरिकन औरत के पास अगर लाखों या करोड़ों रुपये होते थे तो वह उसके अपने नहीं होते थे क्योंकि उसे उन पैसों का मालिक बनने का अधिकार नहीं था, वह उन पैसों को अपनी मर्ज़ी से ख़र्च नहीं कर सकती थी बल्कि अपने पति, पिता या भाई की इजाज़त से ख़र्च कर सकती थी, जिस तरह वह चाहते थे उसी तरह उस औरत का पैसा ख़र्च होता था। एक तरफ़ यूरोप के इस क़ानून को देखिये और दूसरी तरफ़ इस्लाम को देखिये जो औरत को मिल्कियत (स्वामित्व) का पूरा अधिकार देता है और कहता है कि औरत के धन पर मर्द का कोई अधिकार नहीं जब तक औरत ख़ुद उसे आज्ञा न दे तब तक वह उसे हाथ भी नहीं लगा सकता। यह यूरोप और पश्चिमी देश जो औरतों के अधिकार के झूठे दावे करते हैं वहाँ इस बीसवीं शताब्दी की पहली दहाई से पहले तक औरतों को वोट डालने का कोई हक़ नहीं था, उसे किसी तरह के लेन देन का अधिकार नहीं था, उसके बाद से उन्हें कुछ होश आया तो इस तरफ़ आए, उन्होंने सोचा कि औरत को भी मैदान में आना चाहिये लेकिन इसके लिये उन्होंनें सही रास्ता नहीं चुना बल्कि उसे ग़लत रास्ते पर डाल दिया। उसे हर जगह और हर चीज़ में अपने फ़ाएदे और अपने मतलब के लिये इस्तेमाल करते थे। उन्नीसवीं शताब्दी के शुरू में जब पूँजीदारों और साहूकारो नें पश्चिम में बड़ी बड़ी फ़ैक्ट्रियां खोलीं तो उन्हों ऐसे लेबर्ज़ की ज़रूरत थी जो सस्ते दामों में काम करें, जिनकी ज़्यादा आशाएं न हों और वह मालिकों के विरुद्ध ज़्यादा कुछ बोल भी न सकें ऐसे में औरतों की आज़ादी की आवाज़ उठाई गई औरत को घर से फ़ैक्ट्री में लाया गया ताकि उससे काम लेकर अपनी जेबें भरी जाएं और औरत की इज़्ज़त को इस तरह नीलाम करें। आज यूरोप में औरतों की आजादी के नाम पर जो कुछ भी है उसकी कड़ियां वहीं से मिलती हैं। इसलिये वेस्टर्न कल्चर नें औरत को जिस नज़र से देखा है, जिस तरह उसे सुसाइटी में खिलौना बनाकर पेश किया गया है यह एक बहुत बड़ा ज़ुल्म है जो इतिहास का सबसे बड़ा ज़ुल्म है। दूसरी जगहों पर भी औरत पर ज़ुल्म हुआ है लेकिन यह ज़ुल्म ऐसा है जिसनें औरत से उसका सब कुछ छीन लिया।
source : wilayat.in