यूरोप में औरत एक गुड़िया की तरह रह गई थी बल्कि अगर यह कहा जाए कि समाज में वह एक ग़ुलाम या नौकर की तरह थी तो ग़लत नहीं होगा, कई आन्दोलन उसको अपने पति की ग़ुलामी और उस वातावरण मे उसके पिछड़ेपन से बाहर निकालने के लिए शुरू किए गए।
यूरोप में औरत एक गुड़िया की तरह रह गई थी बल्कि अगर यह कहा जाए कि समाज में वह एक ग़ुलाम या नौकर की तरह थी तो ग़लत नहीं होगा, कई आन्दोलन उसको अपने पति की ग़ुलामी और उस वातावरण मे उसके पिछड़ेपन से बाहर निकालने के लिए शुरू किए गए।
यूरोप में औरत एक गुड़िया की तरह रह गई थी बल्कि अगर यह कहा जाए कि समाज में वह एक ग़ुलाम या नौकर की तरह थी तो ग़लत नहीं होगा, कई आन्दोलन उसको अपने पति की ग़ुलामी और उस वातावरण मे उसके पिछड़ेपन से बाहर निकालने के लिए शुरू किए गए।
8 मार्च को कई दहाईयों से दुनिया के ज़्यादातर मुल्कों मे ‘इन्टर-नेश्नल वूमेन्स डे’ मनाया जाता है, यह अच्छी बात है कि पिछले कुछ सालों से कई पूर्वी देशों मे औरत के सकारात्मक रोल के सम्बन्ध से इस दिन को याद किया जाने लगा है, लेकिन यह भी सच है कि इस आन्दोलन का परिचय कराने वालों में वही लोग आगे आगे रहे हैं जिन्हों ने औरत का शोषण कर रखा है, अगली कुछ लाईनो मे उन्नीसवी सदी ईसवी के अन्त से अमीरों की पालीसियों को लागू करने वाली संस्थाओं के निन्दनीय रोल पर रौशनी डाली गई है। जिसके द्वारा उन्होंने औरत की असलियत व फ़ायदे को जिस्मानी ज़रूरत और दौलत कमाने तक सीमित कर रखा है और इस तरह औरत की वूमेनिटी का शोषण किया है, जिसके नतीजे मे औरत सुरक्षा, चरित्र, और सम्मान के स्थान से गिरकर अपमान और असुरक्षा की मन्ज़िल तक पहुंच चुकी है।
ऐतिहासिक जांच पड़ताल
यूरोपीय विचारक और राजनीतिज्ञ, इस्लाम के बारे मे एक अस्पष्ट सोच रखते थे, उन्होंने अपने यहां उन्नीसवीं शताब्दी के बीच समाज को सुधारने के मक़सद से कुछ बदलाव लाने की कोशिश की, इस सम्न्ध मे उन्होंने मुसलमानों में कुछ उपरी तौर से पाई जाने वाली बातों को उछाल कर इस्लाम के सम्बन्ध मे ग़लत प्रचार किया, लेकिन इनके बीच कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने इस्लाम के बेहतरीन सिद्धांतों के बारे मे जानकारी हासिल की थी, खासकर औरतों के अधिकारों और उनकी ताक़त के बारे मे, इस लिये उन्होंने इस जोखिम से अपने समाज को आगाह करने की कोशिश की जो इस्लाम के सम्बंध मे ऊपर बताए गए ग़लत प्रचार के नतीजे मे पैदा हो सकते थे। उस समय के मक्कार सियासत करने वालों को यह अनुमान हो चुका था कि अगर मुसलमान इस्लाम की समाजी अच्छाईयों को अपनी कथनी व करनी मे ढाल कर अपनाएं, तो उसके अच्छे प्रभाव पूरे इंसानी समाज पर पड़ सकते हैं, क्योंकि इस्लाम की ऐसी शिक्षाएं दुनिया को प्रेरित व अपने साथ जुड़ने पर मजबूर कर सकती हैं, कयोंकि उस दौर मे पश्चिमी समाज पुरानेपन और पिछड़ेपन से निकलने की तमन्ना को बड़ी बेसब्री से अनुभव कर रहा था।
इसलिए एक यूरोपीय विचारक डाक्टर शेगान ने इस सम्बन्ध मे कुछ पश्चिमी देशों के अन्दर की गई कोशिशों कि ओर इशारा करते हुए उस रुजहान पर दुःख प्रकट किया है जो इन आन्दोलनों को लागू करने मे अपनाए गए, डाक्टर शेगान का कहना था की इस तरह की आज़ादी और अधिकार मुसलमान औरतों को कुछ शर्तों के साथ पहले से ही हासिल हैं, लेकिन जिस तरीक़े से यूरोप मे सुधारवादी आन्दोलन के सम्बन्ध मे इनको लागू किया जा रहा था इसका आख़िरी नतीजा औरत के शोषण के अलावा कुछ नही हो सकता था, जबकि इंगलैण्ड में इस सम्बन्ध में जो क़ानून 1870 ईसवी और 1882 ईसवी के मध्य लागू किए गए, इसमे मुख्य रोल पूंजीपतियों ने निभाया था।
सम्बन्धित आर्डर मे साफ़तौर पर कहा गया था कि औरतों को आज़ादी के साथ कारख़ानों, मिलों और आफ़िसों मे जाकर पैसा कमाना चाहिए और जिस प्रकार वह चाहें ख़र्च करें, इसमे पतियों की कोई रोकटोक नही होनी चाहिए, इसका नतीजा यह हुआ कि समाज में बड़े पैमाने पर औरतें कारख़ानों और बाज़ारों मे काम करने लगीं, जिसका सबसे अधिक लाभ पूंजीपतियों ने उठाया, इसी तरह इटली मे 1919 ईसवी तक औरत पति की नौकरानी की तरह होती थी। लगभग ऐसे ही हालात जर्मनी मे भी उन्नीसवीं सदी के अन्त तक थे, और स्वीडन मे यह हालात 1907 ईसवी तक रहे, जबकि फ्रांस मे 1939 ईसवी तक इस तरह के हालात में तब्दीली हुई, इस लिए इन बदलावों के बाद औरतें अधिक से अधिक पैसा कमाने की टोह मे रहने लगीं, ज़्यादातर यूरोपीय देशों के अन्दर बड़ी तेज़ी के साथ लज्जा, शर्म, मेहरबानी व वफ़ादारी की भावनाएं दिन-प्रतिदिन कमज़ोर पड़ती गईं।
source : wilayat.in