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Tuesday 26th of November 2024
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सूर -ए- अनआम की तफसीर

सारी प्रशंसा ईश्वर के लिए है जिसने आकाशों और धरती की रचना की और उनमें अंधकार तथा प्रकाश बनाया परंतु काफ़िर, लोगों व वस्तुओं को अपने पालनहार का समकक्ष ठहराते हैं।


पवित्र क़ुरआन के सूरए अनआम में 165 आयतें हैं और मक्के में उतरने वाले सूरों में है। इस सूरे में सामान्य रूप से आस्था के सिद्धांत पर चर्चा की गयी है। यह पवित्र क़ुरआन का छठा सूरा है। सूरए अनआम मक्के में, ऐसी स्थिति में उतरा कि अनेकेश्वरवादियों ने इस्लाम के निमंत्रण को रद्द करने के लिए बहुत संघर्ष किया, इसीलिए अन्य सूरों की भांति इस सूरे में भी एकेश्वरवाद, पैग़म्बरी और प्रलय जैसे विषयों पर मुख्य रूप से चर्चा की गयी है किन्तु इस सूरे में वर्णित बातें हर वस्तु से अधिक एकेश्वरवाद और ईश्वर के अनन्य होने पर ठोस प्रमाण है, जो सृष्टि का रचियता और सृष्टि का स्वामी तथा युक्तिकर्ता है। इस सूरे के लक्ष्यों में इसी प्रकार मूर्तिपूजा और अनेकेश्वरवाद से संघर्ष है, इस प्रकार से कि इस सूरे की अधिकतर आयतों में अनेकेश्वरवादियों और मूर्तिपूजा करने वालों का वर्णन किया गया है। प्रत्येक दशा में, इस सूरे की आयतों में चिंतन मनन से जो जीवित व स्पष्ट तर्कों का मिश्रण है, मनुष्य के भीतर एकेश्वरवाद की भावना जीवित होती है और अनेकेश्वरवाद के आधार तबाह होते हैं।


यह जानने मे रोचक लगेगा कि सूरये अनआम रात के समय, काबे के पास एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम पर उतरा और जब यह सूरा उतरा तो लगभग सत्तर हज़ार फ़रिश्ते ईश्वर का गुणगान करते हुए उतरे थे।


सूरए अनआम की आयत संख्या पांच के बाद मूर्तिपूजा करने वालों और अनेकेश्वरवादियों को जागरूक करने के लिए महत्त्वपूर्ण बिन्दु बयान किए गये हैं। पहला यह है कि घमंड और आत्ममुग्धता जो मनुष्य में पथभ्रष्टता और विद्रोह का महत्त्वपूर्ण कारण होता, अतीत की जातियों की स्थिति और उनके खेदजनक अंजाम की याद दिलाता है और इस व्यक्ति को सचेत करता है। क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने उनसे पहले के कितने वंशों को तबाह करके समाप्त कर दिया। हमने धरती में उन्हें वह सत्ता व क्षमता प्रदान की थी कि जो तुम्हें भी नहीं दी है। हमने आकाश से उनके लिए मूसलाधार वर्षा भेजी और उनके पैरों के नीचे से नहरें बहा दीं परंतु उनके पापों के दंड स्वरूप हमने उन सबको (तबाह करके) समाप्त कर दिया और उनके पश्चात एक नया वंश ले आए।


इसीलिए लोगों को चाहिए कि वह अतीत की जातियों के भविष्य का अध्ययन करे और उससे पाठ सीखे और निश्चेतना की निंद्रा से जागे।


पवित्र क़ुरआन ने उन लोगों को जागरूक करने के लिए जिन्होंने द्वेष और आत्ममुग्धता के कारण सत्य का इन्कार करते हैं, उनसे कहता है कि धरती पर सैर करें और जिन्होंने सत्य का इन्कार किया उनके अंजाम को अपनी आंख से स्वयं देखे। (हे पैग़म्बर! उनसे) कह दीजिए कि धरती में घूमो फिरो, फिर देखो कि (ईश्वरीय आयतों को) झुठलाने वालों का अंजाम क्या हुआ?


इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अतीत की जातियों की निशानियों को देखना जो सत्य को इन्कार करने के कारण तबाह हो गयीं, बहुत अधिक पाठ लेने योग्य है क्योंकि इस प्रकार की निशानियों को देखने से मनुष्य के लिए वास्तविकता स्पष्ट हो जाती है।


इस सूरे का नाम अनआम इस कारण से है कि ईश्वर ने इसमें चौपायों के कुछ आदेशों का वर्णन किया है। अरबी भाषा में चौपायों को अनआम कहा जाता है। इस सूरे की 136 से 145 तक की आयतों में अज्ञानता के काल में चौपायों के बारे में अरबों की ग़लत परंपराओं का वर्णन किया गया है। मूर्तियों के लिए बलि चढ़ाना, जानवरों के मांस के संबंध में उनके अंधविश्वास और नियम तथा इस प्रकार के मामले जिनकी जड़े अज्ञानता के काल में निहित है।


जातियों की संस्कृति व परंपरा के बारे में इस बिन्दु का वर्णन आवश्यक है कि हर जाति संभव है कि अपनी रुचि, रुझहान व इच्छा के आधार पर कुछ नियम व क़ानून बनाते हैं और उसके आधार पर कुछ शालीन बातों को अपने ऊपर वर्जित कर लेते हैं या इसके विपरीत अर्थात कुछ बुरे काम को अपने लिए वैध कर लेते हैं। यह प्रक्रिया मानवीय समाज के लिए बहुत हानिकारक प्रभाव रखती है। इसके बहुत से उदाहरण आज के समाज में विशेषकर पश्चिमी देशों में देखे जा सकते हैं। जैसे समलैंगिकों का विवाह और लिव इन रिलेश्नशिप। यही कारण है कि धर्म गुरूओं का मानना है कि केवल ईश्वर की ऐसा क़ानून बना सकता है जो बंदों के हित में हो, क्योंकि उसके नियंत्रण में सारी चीज़ें हैं और वह बंदों के हितों से भलिभांति अवगत है और हर प्रकार की आंतरिक इच्छाओं से सुरक्षित हैं।


जानवरों के बारे में यह कहा जा सकता है कि इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर जानवरों सहित सृष्टि में मौजूद रचनाओं की लक्ष्यपूर्ण सृष्टि की गयी है। हर जानवर की प्रकृति में एक विशेष भूमिका है। जानवरों के संबंध में पवित्र क़ुरआन का विशेष दृष्टिकोण है और मनुष्य को लाभान्वित करने में उनकी सृष्टि, उनके गुणों व उनकी भूमिका ने बहुत से लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है।


बंदों पर ईश्वरीय अनुकंपाओं में, लोगों के मार्गदर्शन और उनको अज्ञानता के अंधकार से निकालने के लिए पैग़म्बरों के साथ ईश्वरीय पुस्तक का भेजा जाना है। सूरए अनआम में इस वास्तविकता की ओर संकेत किया गया है और याद दिलाता है कि क़ुरआन ईश्वरीय वहि व प्रकाशमयी मार्गदर्शन है जो अंधकार को प्रकाशमयी बनाता है।


पवित्र क़ुरआन ने मावनीय परिवर्तनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है और मानवीय शिष्टाचार व संस्कृति को ऊंचा किया है। आज भी चौदह शताब्दी बीतने के बाद भी, विज्ञान की दिन प्रतिदिन प्रगति और नई नई खोज के साथ, क़ुरआने मजीद का चमत्कार होना पहले से अधिक सिद्ध हो चुका है और लोग इस ईश्वरीय पुस्तक के नये नये बिन्दुओं से प्रतिदिन अवगत हो रहे हैं।


हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम, ईश्वरीय दूतों के पितामह हैं और वह ऐसे पैग़म्बर थे जिन्होंने एकेश्वरवाद की रक्षा के लिए अनेकेश्वरवादियों और मूर्तिपूजकों से ज़बरदस्त संघर्ष किया और सृष्टि के बारे में सोचते थे ताकि वार्ता और शास्त्रार्थ के माध्यम से अपनी जाति में पाये जाने वाली भ्रष्टता को उन तक पहुंचाएं और उन्हें सत्य के मार्ग पर ले चलें। सूरए अनआम की 75वीं आयत से 79वीं आयत तक में, एकेश्वरवाद को सिद्ध करने के लिए हज़रत इब्राहीम के एक शक्तिशाली तर्क की ओर संकेत किया गया है। इस आयत में आया है कि और इस प्रकार हमने इब्राहीम को आकाशों और धरती की सत्ता और अधिकार दिखा दिए ताकि वे विश्वास करने वालों में से हो जाएं।


और फिर जब उन पर रात का अंधकार छा गया और उन्होंने एक तारे को चमकते हुए देखा तो कहा कि यह मेरा पालनहार है, फिर जब तारा डूब गया तो उन्होंने कहा कि मैं डूब जाने वालों को पसंद नहीं करता। फिर जब उन्होंने चांद को चमकते देखा तो कहा कि यह मेरा पालनहार है परंतु जब वह डूब गया तो कहा यदि मेरा पालनहार मेरा मार्गदर्शन न करता तो मैं भटके हुए लोगों में से होता। फिर जब सूर्य को चमकते देखा तो कहा कि ये मेरा पालनहार है, ये अधिक बड़ा है परंतु जब सूर्य (भी) डूब गया तो कहाः हे मेरी जाति (वालो!) निसंदेह मैं उनसे विरक्त हूं जिन्हें तुम ईश्वर का समकक्ष ठहराते हो। मैंने अपना मुख निष्ठापूर्वक उसकी ओर कर लिया है जिसने आकाशों और धरती की रचना की है और मैं अनेकेश्वरवादियों में से नहीं हूं।
 
निसंदेह हज़रत इब्राहीम प्रवृत्ति के दीप से और बौद्धिक तर्कों के आधार पर ईश्वर के एक होने पर विश्वास रखते थे किन्तु सृष्टि के अध्ययन से उनका विश्वास परिपूर्ण हो गया।


 सूरए अनआम की आयत संख्या 161 में ईश्वर, हज़रत इब्राहीम के एकेश्वरवाद और उनके सीधे रास्ते तथ उनकी दृढ़ता को रेखांकित करता है। (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि निसंदेह, मेरे पालनहार ने सीधे रास्ते की ओर मेरा मार्गदर्शन किया है जो एक सुदृढ़ धर्म और सत्यवादी इब्राहीम का धर्म है और वह अनेकेश्वरवादियों में से न थे।


हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि मेरी नमाज़, मेरी उपासनाएं, मेरा जीवन और मेरी मृत्यु सब कुछ ईश्वर के लिए है जो पूरे ब्रह्मांड का पालनहार है। और मैं ही उसके आदेशों के प्रति सबसे पहले नतमस्तक होने वाला हूं।


इस सूरे की आयतों में इसी प्रकार वहि, पैग़म्बरी, ईश्वरीय दूत, प्रलय का मुद्दा, परलोक, लोगों की परीक्षा, सृष्टि से अद्भुत दृश्य, भलाई,  लोगों के अधिकारों को पूरा करना, वचनों का सम्मान करना और उस पर कटिबद्ध रहना, ईश्वरीय गुणों तथा बहुत से अन्य विषयों को बयान किया गया है।

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