विकासवाद थ्योरी पेश करने के लिए मशहूर वैज्ञानिक डार्विन से लगभग एक हज़ार साल पहले, इराक़ के मुसलमान बुद्धिजीवी, " जाहिज़ " ने " अलहैवान" अर्थात प्राणी या द एनिमल बुक नामक अपनी पुस्तक में प्राणियों में होने वाले विकास पर व्यापक रूप से चर्चा की है।
जाहिज़ का पूरा नाम " अबू उस्मान, अम्र बिन बहर अलकेनानी अलबसरी " था।
जाहिज़ का जन्म सन 776 ईसवी में दक्षिणी इराक़ के नगर बसरा में हुआ था। यह वह दौर था जब इस्लामी जगत में " मोतज़ेला" कहे जाने वाले मत का बोल बाला था जो हर हाल में बुद्धि व तर्क को प्राथमिकता देने में विश्वास रखते हैं।
यह अब्बासी शासन काल का वह दौर था जब ज्ञान विज्ञान पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता था। इस दौर में इस्लामी जगत के केन्द्र बगदाद में यूनानी भाषा से बहुत सी किताबों का अनुवाद अरबी भाषा में किया गया और इराक़ का बसरा नगर दर्शन शास्त्र व तर्क शास्त्र के बारे में चर्चाओं का केन्द्र था। इस वजह से जाहिज़ को योग्यताओं को फलने- फूलने का अवसर मिला।
बसरा को कागज़, चीनी व्यापारियों से मिला और काग़ज़ ने ज्ञान विज्ञान को फैलाने में मुख्य भूमिका निभाई और जाहिज़ ने किशोरावस्था से ही लिखना आरंभ कर दिया था।
बीबीसी अरबी की वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख के अनुसार जाहिज़ ने विज्ञान, भुगोल, दर्शन शास्त्र, अरबी व्याकरण और साहित्य जैसे विभिन्न विषयों पर 200 से अधिक किताबें लिखीं किंतु इस समय मात्र एक तिहाई किताबें ही उपलब्ध हैं।
जाहिज़ की किताब " अलहैवान" अर्थात प्राणी, एक प्रकार के ज्ञान कोष है जिसमें 350 प्राणियों और पशुओं के बारे में जानकारियां उपलब्ध करायी गयी हैं और यह सूचनाएं और जानकारियां, डार्विन की विकासवाद की थ्योरी से बहुत अधिक समानता रखती हैं।
जाहिज़ अपनी इस किताब में लिखते हैं कि पशु, अपना अस्तित्व बचाने बल्कि अपनी नस्ल बढ़ाने और अन्य शिकारी जानवरों से बचने के लिए संघर्ष करते हैं। जाहिज़ के अनुसार विभिन्न कारण, इस दुनिया में विभिन्न प्राणियों को अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए मदद देते हैं और उनमे नये नये गुण पैदा हो जाते हैं और इसी वजह से कभी वह कुछ और ही बन जाता है।
जाहिज़ ने अपनी किताब " अलहैवान" या " द एनीमल बुक" में लिखा है कि पशु इस संघर्ष में जो नये गुण प्राप्त करते हैं उसे वह अपनी आने वाली पीढ़ी में स्थानांतरित कर देते हैं।
जाहिज़ की किताब में बड़े स्पष्ट रूप में कहा गया है कि इस दुनिया में और पशु व प्राणी, अस्तित्व के लिए सदैव संघर्ष करते हैं और वह एक बदलते रहते हैं। जाहिज़ का मानना था कि पशुओं के लिए हालात और परिस्थितियों के अनुसार अपने भीतर गुण पैदा करना अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ज़रूरी था और इसी लिए कई पीढ़ियों के बाद उनमें भारी बदलाव भी पैदा हो जाता है।
जाहिज़ की इस विचारधारा ने बहुत से इस्लामी बुद्धिजीवियों को प्रभावित किया जिनमें फाराबी, बीरूनी और इब्ने खलदून का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है।
भारतीय उप महाद्वीप के प्रसिद्ध शायर इक़बाल ने सन 1930 में प्रकाशित अपने एक लेख में लिखा है कि जाहिज़ वह हस्ती हैं जिन्हों ने पलायन और वातावरण में बदलाव की वजह से पशुओं में होने वाले परिवर्तन को स्पष्ट किया।
19वीं सदी के आरंभ में युरोप को विकास में इस्लामी भूमिका का अच्छी तरह से अदांज़ा था। डार्विन के समकालिक वैज्ञानिक रिचर्ड ड्रेबर सन 1878 में विकास में मुहम्मदी विचार धारा पर चर्चा कर रहे थे। अलबत्ता इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि स्वंय डार्विन को जाहिज़ के अध्ययनों का ज्ञान था या उन्हें अरबी भाषा की जानकारी थी।
बीबीसी के लिए इस्लाम और विज्ञान श्रंखला तैयार करने वाले एहसान मसऊद का कहना है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम विकास में अन्य लोगों की भूमिका को भी याद रखें।